जैव विविधता

नन्हें पौधे हों या कोई जीव,
जैव विविधता के हैं रूप,
न करे मानव इनका उपहास,
यह तो प्रकृति के उत्तम उपहार।

जंगल अगर जलाआगे,
फिर अरबों पेड़ लगाओगे,
प्रकृति की वह जैव विविधता,
तुम फिर न उगा कभी पाओगे।

जंगल केवल पेड़ों से नहीं है,
सूक्ष्म स्थूल कई जीव वहाँ हैं,
महत्वपूर्ण कई पौधे नन्हें,
उन्हें कैसे उगा तुम पाओगे?

जैव विविधता बोर्ड बनाकर,
इतिश्री हम न कर जाएँ,
ठानें हर जन संजोने की,
इसे तब ही बचा हम पाएँ।

उत्तराखंड को जैव विविधता के,
भर-भर खजाने प्रकृति ने बाँटे,
स्वयं रखें सुरक्षित इनको,
किसी और की राह न ताकें,

जल, थल, नभ के जीव असंख्य,
अनुपम रूप रंग गुण संग,
सबकी अपनी महत्ता है,
मानव करे न इनको तंग।

जैव विविधता वाले क्षेत्र हैं,
पर्यावरण संतुलन के आधार,
नष्ट होती प्रजातियों पर अब,
मानव कर ले थोड़ा विचार।

राष्ट्रीय उद्यान बनाये हैं,
जैव विविधता क्षेत्र रचाये,
लेकिन आड़ पर्यटन की लेकर,
दखलंदाजी करता जाए।

मानव का लालच अब तक,
लील गया प्रजातियाँ असंख्य,
अब भी यदि मानव न चेता,
झेलेगा वह स्वंय भी दंश।

रचयिता
पूनम दानू पुंडीर,
सहायक अध्यापक,
रा०प्रा०वि० गुडम स्टेट,
संकुल-तलवाड़ी,
विकास खण्ड-थराली,
जनपद-चमोली, 
उत्तराखण्ड।

Comments

  1. सुन्दर रचना👌👌👌👍

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद🙏🙏🙏

      Delete
  2. Very true and beautiful poem

    ReplyDelete
  3. Beautiful poem heart touching ....poem 🤗👏👌

    ReplyDelete

Post a Comment

Total Pageviews