पानी तेरे रूप अनेक

मुँह धोऊँगा पानी से,
मुन्ना बोला नानी से।
जाने कब से पानी है,
कितनी बड़ी कहानी है।
इन रूपों में है पानी,
कहती है ऐसा नानी।
तालों में हिलकोरे जल,
कुओं में बहता निर्मल,
पानी है सबके शरीर में,
पानी है सबका जीवन।
प्यासे पानी पीते हैं,
पानी से सब जीते हैं।
कहीं ओस है, बर्फ कहीं,
पानी है क्या भाप नहीं?
नदियाँ बहती कल-कल-कल,
झरने गाते छल-छल-छल।
पर जब बाढ़ लाता है,
भारी आफत ढहाता है।
पानी से ही तो रहता है,
हरा भरा पेड़ों का तन।
               
रचयिता
संजीव कुमार,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मुरथला, 
विकास खण्ड-असमोली, 
जनपद-सम्भल।

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