गाँव हमारा

प्रकृति की छटा है जहाँ निराली,
चारों ओर है फैली सुखद हरियाली।
शुद्ध हवा, पानी की अविरल धारा,
पहाड़ों का है ये अद्भुत  नज़ारा।।
                  ऐसा है गाँव हमारा।

मेहनतकश होते हैं लोग जहाँ,
पैदल चलकर पाते मंजिल यहाँ।
बीता है कल बचपन वो प्यारा,
सबसे सुंदर है और सबसे न्यारा।
               ऐसा है गाँव हमारा।

जहाँ सभी अपने ही नजर आते,
सुख-दुख में सब साथ निभाते।
अपना घर, गलियाँ और चौबारा,
 पर हो  हो गया है सूना बेचारा।
                 ऐसा है गाँव हमारा।

यहाँ न कोई होता है शोर शराबा,
आगे बढ़ने की न होड़ है बाबा।
कर लेते हैं, कम में ही गुज़ारा,
दुःख-सुख में बन जाते हैं सहारा
                 ऐसा है गाँव हमारा।

यूँ ही नहीं पूर्वज यहाँ बसे हमारे,
भू- गर्भ वैज्ञानिक थे वो सारे।
तभी आपदाओं ने किया किनारा,
फलता-फूलता था परिवार सारा।
                ऐसा था गाँव हमारा।

पेड़ों से परिपूर्ण हैं, हरे भरे वन,
गृह निर्माण, ईंधन व पलता पशुधन।
फल-फूल से लदे हैं जैसे हो मधुबन,
वन ही तो हैं जीवन का एक सहारा।
                   ऐसा है गाँव हमारा।

अब तो गाँव भी, आगे ही बढ़े हैं,
शिक्षा, स्वास्थ्य के नए केंद्र खुले हैं।
अनिवार्य शिक्षा है, हम सबका नारा,
सरकार ही करती है, अब खर्चा सारा।
                      ऐसा है अब गाँव हमारा।

देश के साथ गाँव भी विकसित होंगे
पढ़-लिखकर सब बच्चे आगे बढ़ेंगे।
मेहनत लगन से वो पाएँगे किनारा,
जगमगाएँगे जैसे, सूर्य, चाँद सितारा।
                  फले-फूलेगा गाँव हमारा।

रचयिता
दीपा आर्य,
प्रधानाध्यापक,
राजकीय प्राथमिक विद्यालय लमगड़ा,
विकास खण्ड-लमगड़ा,
जनपद-अल्मोड़ा,
उत्तराखण्ड।

Comments

  1. सुंदर कविता👌👌👌

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  2. बहुत ही सुंदर रचना दीपा जी
    वास्तव मै हमारे पूर्वज भू वैज्ञानिक थे तभी तो पुराने मकान आज भी सुरक्षित है

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  3. बहुत ही सुन्दर सोच और गांव की व्याख्या.......

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