पोटली ज़िन्दगी की

भूले-बिसरे वादों और यादों की पोटली
हाँ, इन्हीं यादों का बसेरा है जिंदगी,
दिल के ख़ुश होने पर लगती है प्यारी
मायूसी में टूटा सितारा है ज़िन्दगी,
कभी किसी शायर के दर्द की जुबानी है
कभी कोई कविता या कहानी है ज़िन्दगी,
मासूम बचपन की खिलखिलाहट जैसी है
कभी थके कदमों सी बोझिल है जिंदगी,
यूँ तो सदा चलती है अपनी ही मर्जी से
कभी किसी के हाथों का खिलौना है जिंदगी,
तपती हुई धरती पर बारिश की बूँद जैसी
कभी खुशगवार कभी पतझड़ है ज़िन्दगी,
कभी नन्हें कदमों की आहट में शामिल है
कभी बीते लम्हों का फ़साना है ज़िन्दगी,
बनके आ जाती है भोर की पहली किरण
कभी ढलते सूरज का अंधियारा है ज़िंदगी,
चाहे समेट लो कितना भी आँचल में, हाँ,
बँट के टुकड़ों में बिखर जाती है ज़िन्दगी,
धड़कन बनकर खड़ी साँसो में बसती है
कभी दबे पाँव लौट जाती है ज़िन्दगी!!

रचयिता
शुचि वाष्णेय,
सहायक अध्यापिका,
उच्च प्राथमिक विद्यालय मेउआहसनगंज,
विकास खण्ड-गुन्नौर,
जनपद-संभल।

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