हम बच्चे

हम छोटे- छोटे बच्चे हैं,
लेकिन दिल के सच्चे हैं।

सुबह-सवेरे हम उठ जाते,
खुली हवा में दौड़ लगाते।

दूध-दही  और  मक्खन  खाते,
चाय-कॉफी को हाथ न लगाते।

फिर भी कहलाते कच्चे हैं,
हम  छोटे-छोटे  बच्चे  हैं।

रोज समय से विद्यालय जाते,
गुरुजनों को नित शीश नवाते।

बड़े  ध्यान  से   शिक्षा  पाते,
सीधे विद्यालय  से घर आते।

नियम के सचमुच पक्के  हैं,
हम  छोटे-छोटे   बच्चे   हैं। 

ऑनलाइन हम श्रम से पढ़ते,
सबक समय से स्मरण करते।

गुरु  के शिष्य पक्के हैं,
हम छोटे-छोटे बच्चे  हैं।

रचयिता
नीलम कौर,
सहायक अध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय शाहबाजपुर,
विकास खण्ड-सिकन्दराबाद,
जनपद-बुलंदशहर।

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