तर्पण

आये कितने इस वसुधा पर, शिक्षा का दीप जलाने को।
कोई दिया बना कोई तेल बना, बाती बनकर महकाने को।।

इस देह से लाये अभिलाषा, अपना सर्वस्व दिखाने को।
भारत के सुदृढ़ भविष्य को, इस दुनिया में फहराने को।।

विवेकानंद, कोई बना कलाम, धरती का कर्ज चुकाने को।
कोई नालन्दा तक्षशिला पहुँचा, ज्ञान का यान उड़ाने को।।

कोई पत्तों पर दीवारों पर, पांडुलिपियों से बोध कराने को।
दुर्लभ पौराणिक स्मृतियों से, हमें विद्या ज्ञान कराने को।।

हम जान सकें अपनी गाथा, अपनी संस्कृति बचाने को।
पूरी दुनिया का भूगोल यहाँ, सारा इतिहास पढ़ाने को।।

'गुरु' नाम नहीं सबको मिलता, होता है तमस् मिटाने को।
जो तपते हैं दिन रात यहाँ, औरों का भाग्य जगाने को।।

है धन बल से कहीं दूर लक्ष्य, भेदभाव सभी हटाने को।
खुद मिटकर उपजाकर कुछ, भारत का स्वर्ण जगाने को।।

शिक्षा न दीवारों में कैद रहे, हर बिंदु से सिंधु मिलाने को।
लाखों में एक ही जल पाता, दुनिया को बोध कराने को।।

हैं आप-आप से ही दुनिया,  और कृतियाँ सभी रचाने को।
बनो कुम्भाकर ऐसे मिल सब, दुनिया में शांति बसाने को।।

इतिहास उन्हें "तर्पण" करता, जो मिट जाते ज्ञान बहाने को।
जो अपने को ही न खोज सका, न बचता उन्हें दिखाने को।।

जो अपने को.....................................।।
     
रचयिता
कृष्ण कुमार,
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय रामपुर की मड़ैया, 
विकास खण्ड-भाग्यनगर, 
जनपद-औरैया।


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