हमारा भोजन


कक्षा - 3
विषय : हमारा परिवेश
पाठ - 5 (हमारा भोजन)
(कहानी संवाद द्वारा)

अमर की गाँव में मिठाई की एक बड़ी दुकान थी। दीवाली से दो दिन पहले अमर ने कारीगरों को बुलाया और कहा, 'कल दीवाली है और काफी लोगों ने ऑर्डर दिया है इसलिए मैं चाहता हूँ कि मिठाइयाँ आज ही बना ली जाएँ।' अमर की बेटी संगीता भी वहीं बैठी सबके बीच हो रही बातचीत सुन रही थी।
संगीता अमर से, "पापा! लोग इतनी सारी मिठाईयों का करेंगे क्या?"
अमर : लोग मिठाई खाने के लिए खरीदते हैं।
संगीता : लोग खाते क्यों हैं?
अमर : भूख मिटाने के लिए।
संगीता : क्या मिठाई खाने से भूख मिट जाती है?
अमर : नहीं, केवल मिठाई खाने ही से भूख नहीं मिटती है।
संगीता : तो फिर क्या खाने से भूख मिट सकती है?
अमर : भूख लगने पर तुम क्या करती हो?
संगीता : खाना खाती हूँ।
अमर : जिस तरह तुम्हें भूख लगती है तो तुम खाना खाती हो ठीक उसी प्रकार अन्य सभी लोग भी खाना खाकर (भोजन कर) भूख मिटाते हैं।
संगीता : पापा भूख लगने पर हम खाना क्यों खाते हैं?
अमर : अच्छा एक बात बताओ, जब तुम्हें भूख लगती है तो कैसा महसूस होता है?
संगीता : मुझे?
अमर : हाँ, तुम्हें।
संगीता : मुझे भूख लगती है तो मेरे पेट में चूहे कूदने लगते हैं और कमजोरी लगने लगती है। पढ़ने खेलने में मन नहीं लगता।
अमर : अच्छा, और खाने खाने के बाद।
संगीता : जान आ जाती है।
अमर : यानी ताकत महसूस होती है न।
संगीता : हाँ।
अमर : बेटा! भोजन करना आवश्यक है क्योंकि भोजन से हमें ऊर्जा मिलती है, भोजन हमारे शरीर में वृद्धि करता है और बीमारियों से सुरक्षा प्रदान करता है।
संगीता : आप कह क्या रहे हैं मुझे समझ में नहीं आ रहा।
अमर : अगर हम भोजन नहीं करेंगे तो हम बीमार हो जाएँगे और हमारा शरीर विकास नहीं करेगा।
संगीता : खाना खाने से शरीर की वृद्धि में क्या संबंध?
अमर : देखो हमारे शरीर की वृद्धि और विकास प्रोटीन पर निर्भर है और प्रोटीन मिलता है - दाल, अंडा, दूध, मछली, फल और सब्जियों में।
संगीता : मतलब।
अमर : तुम भोजन में दाल, दूध और सब्जी खाती हो कि नहीं।
संगीता : खाती हूँ।
अमर : यह दाल, दूध और सब्जी में प्रोटीन पाया जाता है जो शरीर के विकास के लिए जरूरी है।
संगीता : यानी हमें प्रोटीन वाली वस्तुएँ अधिक खानी चाहिए।
अमर : केवल प्रोटीन ही नहीं। प्रोटीन के साथ-साथ और भी आवश्यक और अनिवार्य तत्व हैं जिन्हें भोजन में शामिल करना चाहिए।
संगीता : वे कौन सी वस्तुएँ हैं?
अमर : कार्बोहाइड्रेट, वसा, खनिज लवण और विटामिन।
संगीता : कार्बोहाइड्रेट।
अमर : हाँ, कार्बोहाइड्रेट यानी गेहूँ, चावल, चीनी, अंडा, दूध।
संगीता : कार्बोहाइड्रेट का काम क्या है?
अमर : कार्बोहाइड्रेट हमें ताकत यानी ऊर्जा प्रदान करता है।
संगीता : और वसा?
अमर : वसा तेल, घी, दूध आदि से मिलता है।
संगीता : वसा का क्या काम है?
अमर : वसा भी शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है।
संगीता : खनिज लवण और विटामिन।
अमर : खनिज लवण और विटामिन दूध, फल और हरी पत्तेदार सब्जियों में मिलते हैं।
संगीता : इनका काम क्या है?
अमर : शरीर को बीमारियों से बचाना।
संगीता  : कैसे?
अमर : हमारे शरीर में बहुत सी बीमारियाँ जैसे रतौंधी, स्कर्वी आदि विटामिन्स की कमी से होती हैं।
संगीता : विटामिन के बारे में और बताइए।
अमर : विटामिन हमारे भोज्य पदार्थ का एक बहुत ही महत्वपूर्ण तत्व है जिसकी कमी हमारे शरीर में बहुत सी बीमारियों को जन्म देती है।
संगीता : कैसे?
अमर : विटामिन मुख्यतः 6 होते हैं।
विटामिन ए - कमी से रतौंधी रोग।
गाजर, पालक और अंडा में विटामिन ए मिलता है।
विटामिन बी - कमी से बेरी-बेरी रोग।
टमाटर, भूसी दार गेहूँ का आटा, अण्डे की जर्दी, हरी पत्तियों का साग, बादाम, अखरोट, नारंगी, अंगूर, दूध, आदि में विटामिन बी मिलता है।
विटामिन सी : कमी से स्कर्वी रोग।
आँवला, खट्टे फल आदि में विटामिन सी मिलता है।
विटामिन डी : कमी से रिकेट्स रोग।
सूर्य का प्रकाश, दूध आदि में विटामिन डी मिलता है।
विटामिन ई और विटामिन के।
संगीता : हमें सभी तत्व एक साथ लेने चाहिए कि अलग-अलग।
अमर : सभी पोषक तत्व एक साथ लेने चाहिए और जिस भोजन में ऐसे सभी तत्व एक साथ मिलते हैं उन्हें हम संतुलित आहार कहते हैं।
तभी एक कारीगर ने आकर अमर से कहा कि मिठाइयाँ तैयार हो गई हैं।
अमर कारीगर से, "मिठाइयों को सफाई से और ढककर रख दो।"
संगीता : ढककर क्यों?
अमर : बनाने से ज्यादा जरूरी है सामान की स्वच्छता।
संगीता : मैं कुछ समझी नहीं।
अमर : अगर मिठाइयाँ खुली छोड़ दी गयीं तो उन पर मक्खियाँ बैठेंगी और उन्हें गंदा कर देंगी। तो लोग उन्हें खरीदेंगे नहीं और हमारा नुकसान हो जाएगा।
संगीता : तो क्या खाना भी ढककर रखना चाहिए?
अमर : हाँ, जिस तरह मक्खियाँ मिठाई पर बैठकर उन्हें दूषित करती हैं ठीक उसी प्रकार भोजन को भी।
संगीता : क्या ऐसा भोजन करना चाहिए जिन पर मक्खियाँ भिनभिनाती हों?
अमर : नहीं।
संगीता : क्यों?
अमर : दूषित भोजन करने पर हम बीमार पड़ जाते हैं। इसलिए हमें खाने वाले पदार्थ हमेशा ढककर रखने चाहिए।
संगीता : बाजार में बिकने वाले सामान।
अमर : बाजार में बिकने वाले सामान यदि खुले में रखे हैं तो उन्हें नहीं खाना चाहिए।
संगीता : तो फिर।
अमर : सब्जी और फल घर लाकर उन्हें पहले धुलना चाहिए फिर पकाकर या कच्चा खाना चाहिए।
संगीता : पकाकर और कच्चे से मतलब।
अमर : कुछ सब्जी और फल या तो पकाकर खाना चाहिए या कच्चे। जैसे- पालक, आलू, कटहल आदि को पकाने से इनका स्वाद बढ़ जाता है और चुकंदर, गाजर और मूली कच्चे ही साफ पानी से धोकर खा सकते हैं।
संगीता : क्या हाथ भी धुलना जरूरी है?
अमर : हाँ, हाथ धुलना भी जरूरी है।
यदि हम बिना हाथ धुले खाना खाने लगें तो हाथ पर जमे धूल और कीटाणु भोजन के साथ पेट में चले जाते हैं और हमें बीमार डाल देते हैं।
संगीता : अच्छा बीमारी से बचने के लिए और क्या-क्या करना चाहिए?
अमर : भोजन को निगलना नहीं चाहिए। भोजन हमेशा चबा चबाकर ही करना चाहिए।
संगीता : क्यों?
अमर : चबा-चबाकर भोजन करने से मुँह का लार भोजन के साथ मिल जाता है जिससे भोजन पचाने में मदद मिलती है।
संगीता : लार।
अमर : हाँ, लार भोजन पचाने के लिए प्रमुख कारक है और हमें अपने दाँतों की नियमित सफाई करनी चाहिए।
संगीता : क्यों?
अमर : हम खाना खाते हैं तो खाने के कुछ अंश दाँतों में चिपक जाते हैं और यदि हम अपने दाँतों की नियमित सफाई नहीं करेंगे तो हमारे दाँत सड़ जाएँगे।
सभी कारीगरों ने मिठाइयों को उनके नियत स्थान पर रखकर ढक दिया और अमर से बोले, “आज का कार्य सम्पन्न हो गया है और हम लोग अब घर जा रहे हैं।
अमर : जरा ठहरो।
अमर कमरे के अंदर गया और जल्दी ही वापस आकर अपने कारीगरों को उनके पारिश्रमिक का भुगतान कर विदा किया और संगीता को लेकर स्वयं भी घर चला गया।

लेखक
विकास तिवारी,
सहायक अध्यापक,

प्राथमिक विद्यालय अताय,
विकास खंड-शहाबगंज,
जनपद-चन्दौली।

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