सड़क पर पलता बचपन

मख़मल क्या मलमल के बिछौने
ना गाड़ी, बंगला, खेल-खिलौने
अम्मी अब्बू तोड़ें पत्थर
और पत्थर संग पलता बचपन
हमसे क्यूॅ॑ न सँभलता बचपन।

चेहरे पर चमक दिनकर की
आँखों में निर्मल शीतलता
साँसों में धमक पवन की
होठों पर सजती कोमलता
रेत, ईंट और गारे के संग
देखो कैसे ढलता बचपन
हमसे क्यूँ न सँभलता बचपन।

सूरज की गर्मी में तपता
शीत लहर में झरता है
बारिश में भीगे हैं तर-तर
अंधियारों में डरता है
फूलों जैसा तन-मन पाकर
नित काँटों पर चलता बचपन
हमसे क्यूँ न सँभलता बचपन।

रूखी-सूखी खाकर भी
हँसता गाता रहता है
उन्मुक्त गगन में उड़ता है
और दरिया जैसा बहता है
चकाचौंध को देख ठिठकता
खुद अपने को छलता बचपन
हमसे क्यूँ न सँभलता बचपन।

कागज़, कलम, दवात और पुस्तक
इनसे ना कोई नाता-रिश्ता
सपन सींचता स्वेद से अपने
पत्थर को पानी से घिसता
धरती, कागज, शस्त्र, लेखनी
अपनी किस्मत लिखता बचपन
हमसे क्यूॅ॑ न सँभलता बचपन।

रचयिता
आरती रावत पुण्डीर,
प्रधानाध्यापक,
राजकीय प्राथमिक विद्यालय असिंगी,
विकास खण्ड-खिर्सू,
जनपद-पौड़ी गढ़वाल,
उत्तराखण्ड।

Comments

  1. अभावग्रस्त बचपन की करुण चित्रण 👌👌👌🙏🙏

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  2. Hearttouching poem. Amaging words.

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  3. बेहतरीन रचना👌👌

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