बिसर गया बचपन

चंचलता उस मूरत की
मासूम सी मुस्कान
आँखें मूँद विस्मित खड़ी
कहीं बिसर गया बचपन।

 प्रसन्नता उस मुखमंडल की
 स्वच्छंद था विचरण
 आँखें मूँद विस्मित खड़ी
 कहीं बिसर गया बचपन।

 निस्वार्थता की भावना
 अब स्वार्थ से परिपूर्ण
 आँखें मूँद विस्मित खड़ी
 कहीं बिसर गया बचपन।

स्नेहलता  की विस्तारता
प्रतिकार की है ललकार
आँखें मूँद विस्मित खड़ी
कहीं बिसर गया बचपन।

 जड़ चेतन को जीवित कर
 प्रीत प्रेम का रस घोल
 अब छोड़ दे व्यर्थ व्यथा
 नहीं बिसर गया बचपन।

रचयिता
रेखा बेदी,
सहायक शिक्षिका,
प्राथमिक विद्यालय मत्तूखेड़ा,
विकास खण्ड-सफीपुर, 
जनपद-उन्नाव।

Comments

  1. बहुत सु दर भावपूर्ण कविता।

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