बुझती ज़िन्दगी

इतनी सस्ती है क्या ये ज़िन्दगी;
जो तू धुएँ में इसे उड़ा देता है ।
तम्बाकू की कड़वाहट को,
अपनी जुबां का स्वाद बना लेता है
सोचा है क्या कभी तूने,
तेरी इस लत से क्या-2 होता है;
तुझे साँस देने वाले ये फेफड़े,
खुद कितना घुट-2 के जीते हैं।
सुलगती हर सिगरेट के साथ,
तू खुद ही अपनी चिता सजाता है;
माना कि अपनों से प्यार है तुझे;
पर अनजाने में तू उनको भी तो,
मौत की तरफ ले जाता है।
वाक़िफ तो है तू,
इसके हर बुरे अंजाम से;
फिर क्यों नहीं लगाता है,
थोड़ा सा खुद पर लगाम तू।।
अगर प्यार है तुझे,
 खुद से और अपनों से;
तो मीलों की दूरी बना लो,
हमेशा के लिए इस बला से।

रचयिता
हिना सिद्दीकी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय कुंजलगढ़,
विकास खण्ड-कैंपियरगंज,
जनपद-गोरखपुर।

Comments

Total Pageviews