तंबाकू निषेध दिवस

प्रकाशमय जीवन को अंधकार में क्यों डुबो रहे हो,
क्यो पैग पे पैग और कश पे कश, दिन-रात लगा रहे हो।

 सिगरेट, बीड़ी, तंबाकू इतने ही अच्छे होते,
तो लोग सड़कों पर अन्न के दाने के लिए न रोते।

आप तो मरते ही हो, दूसरे का स्वास्थ्य भी खराब करते हो, क्योंकि अपने से ज्यादा पड़ोस वाले के जीवन में जहर भरते हो।

 सुध, बुध खो जाती है इसके पीने से,
फिर क्यों लगाए रहते हो, इसको सीने से।

इसको पीकर अपराध ढेरों करते हो,
नारी को छेड़ो, पत्नी को मारो, बच्चों को बेबस करते हो।

 हर दिन जिंदगी का अजीज है इस जहां में,
 फिर क्यों जाते हो ऐसी मौत की राह में।

 यह ताकत, शौर्य, वीरता नहीं देती है,
बल्कि शरीर को जर्जर बना देती है।

 चंद लम्हों में स्वर्ग से घर को नर्क बना देती है,
 यह बीड़ी शराब, सिगरेट, तंबाकू लोगों को बेजान बना देती है।

व्यसनों में पड़कर राजा रंक हो गए,
अच्छे-अच्छे अमीर इसके सेवन से फकीर हो गए।

लोगों की अक्ल में क्यों नही आता है,
इससे जीवन का कोई भी न नाता है।

इसको छोड़ने के लिए व्रत, संयम रखने हैं तुम्हें ,
अवश्य एक दिन विजय मिलेगी हमें।

इतने युद्ध, लड़ाइयाँ यूँ ही नहीं  जीती हैं,
यह तो फिर हमारी और आपकी आपबीती है।

रचयिता
नीलम सिंह, 
सहायक अध्यापक,
उच्च प्राथमिक विद्यालय रतनगढ़ी,
विकास खण्ड व जनपद-हाथरस।

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