डॉ0 पदुम लाल पुन्नलाल बख्शी

माता मनोरमा का जाया लाल, नाम पदुमलाल बख्शी,
सौभाग्यशाली पिता, नाम पुन्नालाल बख्शी।
27 मई 1894 में छत्तीसगढ़ में जन्म लिया,
राजनादगाँव कस्बे का नाम चुन लिया।
बी. ए. तक शिक्षा पाई, मास्टरजी नाम कहाय,
त्रिवेणी परिसर की मूर्तियों में, अमर अपना नाम कराए।
"विश्व साहित्य" "समस्या" और लिखा "पंच पात्र"",
"यदि मै लिखता" "अश्रुदल" और लिखे " नवरात्र"।
साहित्यिक निबंध " बिखरे पन्ने" और लिखा "मेरा देश",
कविता कहानियों में वर्णन का विषय रहा स्वदेश।।
विधा रही गद्य पद्य, लिखा कहानी और निबंध,
"तुम्हारे लिए" "शतदल" लिखा और लिखे "वे दिन"।
साहित्य समग्र लिखा गया, नाम बख्शी ग्रंथावली,
विविध वर्णन लिखे, विभाजित अष्ट खण्ड वली।
1949 में साहित्य वाचस्पति उपाधि पाए,
1969 में पुनः डी लिट उपाधि घर लाए।
चिरनिद्रा में सो गया, अलबेला 28 दिसंबर 1971 को,
छोड़ गया पीछे अपने, विस्तृत साहित्य गगन को।
नमन है आज बख्शी जी को, जग भुला जान पड़ता है,
त्रिवेणी की तीन धाराओं से, साहित्य जिंदा रहता है।।।

(त्रिवेणी की तीन धाराएँ-
1-पदूम लाल पुनालाल बख्शी
2-गजानन माधव मुक्तिबोध
3-डॉ0 बलदेव प्रसाद मिश्र)

रचयिता
नम्रता श्रीवास्तव,
प्रधानाध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय बड़ेह स्योढ़ा,
विकास खण्ड-महुआ,
जिला-बाँदा।

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