कैसे ईद मनाएँ हम

जब सारे इंसां हैरां हैं
जब सारी दुनियां परेशां है।
मत पूछो दिल का अब आलम
कैसे ईद मनाएँ हम।।

दर छूटा, घर से दूर हुए
जीने से भी मजबूर हुए।
फीकी-फीकी सी ईद है ये
दुनिया में छाया रन्ज-ओ-ग़म
कैसे ईद मनाएँ हम।।

बेनूर सा महताब हुआ
ग़ुस्से से सुर्ख़ आफ़ताब हुआ।
हमदर्दी, प्यार भूल गए
जज़्बात गये सब बर्फ़ से जम
कैसे ईद मनाएँ हम।।

चारो तरफ़ आहें, आँसू
फूलों की डाली सूख गई।
ख़ुशियों का सूरज डूब गया
चारों तरफ़ छाया मातम
कैसे ईद मनाएँ हम।।

तू मेरा रब तू सबका रब
हम सब तेरे ही बन्दे हैं।
तू हमको कर माफ़ ख़ुदा
तू सबपे कर रहम-ओ-करम
कैसे ईद मनाएँ हम।।

रचयिता
कौसर जहाँ,
सहायक अध्यापक, 
पूर्व माध्यमिक विद्यालय बड़गहन,
विकास क्षेत्र-पिपरौली,
जनपद-गोरखपुर।

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