विद्यालय की उत्कृष्टता

वर्तमान परिस्थितियों में अधिकतम शिक्षक कैसे अपने विद्यालय को उच्च उत्कृष्ट परिणाम तक पहुँचा सकें? इसके लिए हम सब मिलकर एक-दूसरे का क्या सहयोग और प्रयास कर सकते हैं?
वर्तमान परिस्थिति में हम देखें तो सैकड़ों विद्यालय सुविधाओं से लैस हैं तथा शिक्षा में बच्चों को  आग्रणी कर नित नए प्रतिमान स्थापित कर रहे हैं। इसके लिए दो चीजों की आवश्यकता होती है
पहला- स्वप्रेरणा, दूसरा-दूसरों से प्रेरणा।

जब तक हमारी आत्मा, हमारा मन और मस्तिष्क हमें किसी भी कार्य करने के लिए बाधित या रुचिकर नहीं करता है तब तक हमें कोई कितनी भी प्रेरणा दे हम उस कार्य को नहीं करेंगे। शिक्षकों की स्व प्रेरणा, कार्य करने की इच्छा एवं उसको पूरी करने का आत्मविश्वास के परिणामस्वरूप ही आज सैकड़ों विद्यालय उत्कृष्ट विद्यालय की सूची में है।

एक अकेले प्रधानाध्यापक या शिक्षक की अच्छी सोच मात्र से ही विद्यालय उत्कृष्टता के शिखर पर नहीं पहुँचता है, उसके लिए भी हमें कई हाथों एवं मनोबल की आवश्यकता होती है, उनमें प्रमुख हैं-
(१) सामुदायिक सहभागिता-जिसमें सामाजिक संस्थाएँ, समुदाय, राष्ट्र हित में कार्य करने वाली संस्थाएँ, एनजीओ आदि सम्मिलित हैं।
(२) अभिभावकों का सहयोग - स्थानीय लोगों का सहयोग- दूसरा महत्वूर्ण सहयोग विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों तथा स्थानीय लोगों का होता है जो आपका मनोबल बढ़ाते हैं कि आप अच्छा कार्य कर रहे हैं एवं यथासंभव मदद एवं सहयोग करते हैं।
(३) विभागीय सहयोग-आपके विभाग के अधिकारी से लेकर शिक्षा विभाग से जुड़े हर महत्वपूर्ण व्यक्ति, डाइट, शिक्षक समूह तथा जिले के आला अधिकारी जो आपको कार्य को सराहते हैं तथा यथासंभव मदद करती हैं जिससे आपको मनोबल मिलता है और प्रत्येक बार नई ऊर्जा से कार्य करते हैं।
(४) आपका विद्यालय परिवार- विद्यालय परिवार विद्यालय की उत्कृष्टता का सबसे महत्वपूर्ण कड़ी होता है जो आपके साथ कदम से कदम मिलाकर चलता है तथा शिक्षा, सृजनता, नैतिकता, अनुशासनात्मक आदि की शिक्षा देकर एवं आपकी उपस्थिति व अनुपस्थिति में कार्य करके विद्यालय को उत्कृष्ट बनाते हैं।
(५) हमारे विद्यार्थी- विद्यार्थी हमारी कार्यों का आईना, प्रतिबिंब होते हैं हम जो भी सिखाते हैं करते हैं हमारे कार्यों का आईना बच्चे जाकर दिखाते हैं, इसमें अच्छाई बुराई दोनों छुपी होती हैं और वही हमारा सही मूल्यांकन होता है उसी से हमारे विद्यालय का नामांकन, ठहराव, उपस्थिति आदि का प्रणाम पत्र मिलता है।
तो इस तरह इन पाँचों के सहयोग से शिक्षक भौतिक परिवेश में सुधार, शिक्षा में सुधार से जनता का विकास एवं अनुशासन एवं समयबद्ध कर पूर्ण शारीरिक एवं मानसिक विकास कर बच्चों में नैतिकता, राष्ट्रीयता एवं अच्छे आचरण का विकास कर रहे हैं, इसके अच्छे नागरिक तैयार कर रहे हैं।
अब बात आती है दूसरों से प्रेरणा-
हर व्यक्ति जीवन में किसी ना किसी से प्रभावित होता है उसके कार्यों से, उसकी कार्यशैली से, उसकी वाणी एवं विचारों से कर्मठता से। जब हम विद्यालय या कहीं भी कार्य करना सीखते है तो कोई ना कोई प्रेरणा स्रोत होता है और उसके जैसे हम कार्य करते हैं। कभी-कभी उससे भी अच्छा कार्य कर जाते हैं और एक-दूसरे से सीखकर, स्वच्छ प्रतिस्पर्धा, लगन, मेहनत से कार्य करने की भावना हमारे विद्यालय को उत्कृष्ट बना देती है।
हम जो भी कार्य करते हैं उसे अगर समूह के साथी अपने जुड़े लोगों को बाँटेंगे तो उसकी कमियाँ और खामियाँ दोनों सामने आएँगे तथा लोग भी उससे सीख रहे हैं और सीखेंगे।
हर व्यक्ति की सोचने एवं समझने की शक्ति अलग-अलग होती है और अच्छी सोच एवं कुछ नया कर गुजरने की दृढ़ इच्छाशक्ति से नव विचारों का जन्म होता है।
आज शिक्षा के क्षेत्र में नित्य नए नवाचार हो रहे हैं। हम अपने द्वारा किए गए नवाचारों से एवं  दूसरों के नवाचारों को एक दूसरे तक पहुँचाकर शिक्षा को एवं विद्यालय को बेहतर बना रहे हैं एवं बना सकते हैं। इस तरह सबका साथ, सबका विकास की भावना को दृष्टिगत करते हुए एक-दूसरे के कार्यों एवं विचारों के माध्यम से हर विद्यालय को श्रेष्ठ और उत्कृष्ट बनाने में एक-दूसरे का सहयोग और प्रयास कर सकते हैं।

रचयिता
नीलम जैन,
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय रजवारा, 
विकास खण्ड-बिरधा, 
जनपद-ललितपुर।

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