69/2024, बाल कहानी-16 अप्रैल


बाल कहानी- मदद
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एक बडे़ पेड पर चील का घोंसला था। घोंसले में उसका एक छोटा सा बच्चा था। एक दिन चील कहीं जा रखी थी। उसका बच्चा नीचे गिर गया। पेड़ के पास ही नीरा की माँ घास काट रही थी। उसने चील के बच्चे को उठाया और उसे अच्छी तरह से बिठा दिया। जब चील घोंसले में वापस आयी तो घोंसले में बच्चे को न पाकर वह परेशान होकर रोने लगी। वह बच्चे को इधर-उधर ढूँढ़ने लगी। तभी उसे नीरा की माँ के पास अपना बच्चा दिखाई दिया। चील ने गुस्से में नीरा की माँ से कहा कि-, "मैं इतनी देर से अपने बच्चे को ढूँढ रही हूँ। तुमने मेरे बच्चे को छिपा रखा है।"
तब नीरा की माँ ने कहा-, "तुम्हारा बच्चा नीचे गिर गया था, मैंने उसको अच्छी तरह से अपने पास बिठाया है और तुम मुझ पर गुस्सा कर रही हो।" ऐसा सुनकर चील को बहुत बुरा लगा कि जिसने मेरे बच्चे की रक्षा की, मैं उसी पर गुस्सा कर रही हूँ। चील ने नीरा की माँ से कहा-, "मुझे माफ कर दो! मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गयी है।" नीरा की माँ ने कहा-, "कोई बात नहीं। अब तुम अपने बच्चे को ले जा सकती हो।" बच्चे ने अपनी माँ को देखा तो वह बहुत खुश होकर अपनी माँ के सीने पर चिपक गया।
करे मुसीबत में मदद, जब कोई इन्सान।
तो समझो उस रूप में, आये हैं भगवान।।

संस्कार सन्देश- 
जो दूसरों की मदद करते हैं तो भगवान उनकी मदद करता है।

लेखिका- 
दमयन्ती राणा (स०अ०) 
रा० उ० प्रा० वि० ईड़ाबधाणी
कर्णप्रयाग चमोली (उत्तराखण्ड)
कहानी वाचक-
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपुर

✏️ संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद 
नैतिक प्रभात

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