एक दिन बोली लली

एक दिन बोली लली पिता से| काम तुम्हारो सब करि डारो||

हमें देऊ जे कॉपी किताबें| हमसे ना कटिहे चारो||[2]

सुनके बात लली अपनी की| पिता ने ऐसे फटकारो||

उते धरो जे कॉपी किताबें| ले हसिया काटो चारो||[2]


चुन्नू मुन्नू छोटो भैया सब विद्यालय जावत हैं|

सबरे घर को काम करूँ मैया हम थक जावत हैं||

भारी इच्छा हैं पढ़िबे की मैया मत बादर फारो|

हमें देऊ जे कॉपी किताबें हमसे ना कटिहे चारो||[2]


सुनके बात लली अपनी की मैया ऐसे खिसियानी|

मैं घर से बाहर ना निकली तैने पढ़िबे की ठानी||

घर में खुटी धरी हैं चकिया जाय मका कू  पीस डारो|

उते धरो जे कॉपी किताबें ले हंसिया काटो चारो||[2]


सुनके बात मात अपनी की नैनन से टपको पानी|

बिना पढ़े नर पशु समाना मैया नाय तुमने जानी||

पढ़ लिख कर तेरो नाम करुँगी मोकू आज्ञा दे डारो|

हमें देऊ जे कॉपी किताबें हमसे ना कटिहे चारो||[2]


पढ़ लिखकर मैं बनूँ डॉक्टर जग मैं नाम कमाऊँगी|

तोकूँ और पापा अपने कूँ दुनियाँ की सैर कराऊँगी||

कमजोर नहीं अब नारी जग में ये सोच खतम सब करि डारो|

हमें देऊ जे कॉपी किताबें हमसे ना कटिहे चारो||[2]


सुनके बात लली अपनी की मन में पिता हर्षाये हैं|

हाथ में दे दई कॉपी किताबें ऐसे वचन सुनाये हैं||

संग चली जाओ तुम भैया के चिंता मन की हर डारो|

उते धरो जे हंसिया कटारी विद्यालय कूँ पग धारो||[2]


रचयिता

मनमोहन सिंह,

प्रधानाध्यापक,

प्राथमिक विद्यालय सिलावली,

विकास खण्ड-फतेहाबाद,

जनपद-आगरा।



Comments

Total Pageviews