मेरे श्रीराम

हूँ मैं अनन्त, 

हूँ मैं असीम, 

मैं ही सृष्टि का आधार, 

ढाई अक्षर प्रेम में, 

ढाई अक्षर राम में, 

बसती हूँ मैं शक्ति अपार। 


प्रेम ही सत्य, 

राम ही सत्य, 

जीवन मूल्यों का होता इनमें वास, 

यही हैं जीवन का आधार, 

सत्य पर विजय या विजय सत्य की, 

है सत्य की पुकार। 


घिरा है रावण के रूपों से, मानव मन और समाज, 

हरते इनकी पीड़ा से, 

मेरे श्रीराम, 

होता है तभी दशहरा, 

जब होता सत्य की शक्ति से वार। 


प्रेम सत्य से या, 

सत्य से प्रेम, 

हैं मानव का ये श्रंगार, 

होती है इनकी अनूभूति, 

जब हो अभिव्यक्ति, 

तभी हों ये साकार।


 प्रभु श्री राम के चरणों में, 

कोटि-कोटि नमन, 

कोटि-कोटि वंदन, 

जय श्री राम, 

जय श्री राम, 

हदय विराजो मेरे श्री राम।।


रचयिता
अर्चना गुप्ता,
प्रभारी अध्यापिका, 
पूर्व माध्यमिक विद्यालय सिजौरा,
विकास खण्ड-बंगरा,
जिला-झाँसी।

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