70/2024, बाल कहानी-18 अप्रैल
बाल कहानी- चुनाव पर्व
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होशियारपुर गाँव में एक परिवार रहता था। परिवार में सभी लोग एक-दूसरे को बहुत ही प्यार करते थे और बहुत ही प्यार से रहते थे। उस परिवार में दो बेटे थे- नारायण और जगदीश। माता जी दोनों ही बच्चों को बहुत ही स्नेह करती थी, लेकिन पढ़ाई पर जरा भी ढिलाई पसन्द न थी। बच्चे गाँव के प्राइमरी स्कूल में पढ़ते थे।
आजकल स्कूल में "स्कूल चलो अभियान" के साथ-साथ चुनाव से संबन्धित गतिविधि भी हुआ करती थी।
एक दिन स्कूल की मैडम ने आदेशानुसार "स्वीप मतदाता जागरूकता अभियान" चलाया। गाँव के सभी छोटे बड़े तथा सम्मानित लोगों को भी रैली में शामिल किया गया। इन सभी बातों का असर नारायण पर बहुत पड़ा और मतदान से संबन्धित बहुत से सवाल वह पूछता रहता था।
एक दिन तो हद हो गयी। अपनी माताजी-पिताजी को बात करते सुना, "इस बार चुनाव में लम्बी छुट्टी पड़ रही है। चलो, कहीं घूम आते है। सी०एल० भी नहीं लेनी पड़ेगी।" माता जी कह रही थी। नारायण तुरन्त बोल पड़ा, "नहीं माताजी! हमें पहले वोट डालने जाना होगा, फिर कहीं घूमने जायेंगे।"
"अरे, कैसी बात कर रहे हो बेटा? तुम्हें कुछ नहीं पता।" पिताजी भी बोलते हैं, "कोई भी सरकार बने, हमें क्या? सब एक सी होती है। हमारे एक वोट से क्या बनता बिगड़ता है?"
दूसरे दिन ही उसके पिताजी का का कुछ प्रोडक्ट बाजार में आता है। मगर उसे रेटिंग बहुत कम मिलती हैं, तो वह बिक नहीं पाया। वह बहुत दुःखी होते हैं। तब नारायण सबको समझता है, "कि देखो, एक-एक करके कितना फर्क पड़ता है? इसलिए हम हर चीज को जैसे जाँच-पड़ताल के बाद ही खरीदते हैं या प्रयोग करते हैं, उसी प्रकार हमें वोट डालने से पूर्व सही पार्टी और कार्यकर्ता की भी जाँच कर लेनी चाहिए। हमें मतदान के पर्व को एक पर्व की तरह ही मानना चाहिए।"
दरवाजे पर खड़े मुखियाजी सब बात सुन रहे थे। वह बहुत खुश हुए और बोले, " बेटा! तुमने इतनी अच्छी-अच्छी बातें कहाँ से सीखी? सच! बड़े होकर कुछ नाम करोगे।"
"नारायण ने कहा, "सर! ये सब बातें मेरी मैडमजी ने बतायीं हैं।"
बस! क्या था, विद्यालय में नामांकन की लाइन लग गयी।
संस्कार सन्देश-
सच! अच्छी शिक्षा से अच्छे गुणों का विकास होता है।
लेखिका-
अंजनी अग्रवाल (स०अ०)
उच्च प्रा० वि० सेमरूआ
सरसौल (कानपुर नगर)
कहानी वाचक-
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपुर
✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात
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