79/2024, बाल कहानी-01 मई
बाल कहानी- लगन
---------------
मोहन अपने माता-पिता का अकेला बेटा था। उसके पिता बैंक में चौकीदार थे। मोहन पढ़ाई में बहुत होशियार था। कक्षा पाँच पास करने के बाद छठी क्लास में आकर बहुत खुश था। नया स्कूल एवं नये दोस्त और नयी मैडम और सर जी! उसके अन्दर उत्साह और उमंग भरा हुआ था। शाम को अपने पिताजी के साथ खेत पर काम करने जाता और रात को अपने स्कूल की पढ़ाई करता। मोहन की कक्षा में रिंकू जो बहुत शरारती था, उसको परेशान करता और उसकी चुगली करता रहता। मैडम से शिकायत करता। उसका खाना निकालकर खा लेता है।
एक दिन मोहन ने अपने पिताजी से सारा हाल बताया। पिताजी ने कहा-, "तुम्हारे अन्दर करने की लगन जो है, उसको कभी कम मत करना। आज के जमाने में ऐसे लोग बहुत होते हैं, जो आपको आगे बढ़ने से रोकेंगे। तुम्हें मेरा सपना पूरा करना है। मैं चाहता हूँ, कि जिस बैंक में मैं चौकीदार हूँ, उसी बैंक के आप मैनेजर बनो।" मोहन को यह सारी बातें बहुत अच्छी लगी और उसने कहा-, "ऐसा ही होगा पिताजी!"
अगले दिन जब वह विद्यालय में अपनी कक्षा में पढ़ रहा था। रिंकू ने उसकी होमवर्क की कॉपी निकालकर फाड़ दी। थोड़ी देर में ही टीचर आयी। मोहन अपनी कॉपी लेकर आया। मोहन थोड़ा परेशान हुआ और मैडम से कहा-, "मैडम! मैं आपसे कुछ नहीं छुपाऊँगा। मैंने सारा काम कर लिया था, लेकिन रिंकू ने मेरी काॅपी फाड़ दी है। लेकिन उस काम को मैं अभी ब्लैक-बोर्ड पर करके दिखा सकता हूँ।"
टीचर को बहुत अच्छा लगा और उन्होंने चाॅक देकर बच्चों को कहा-, "लिखो!" मोहन ने सच्ची लगन से अपना होमवर्क किया था। उसको याद था। उसने तुरन्त ही लिख दिया। अब मैडम ने रिंकू को बुलाया और कहा-, "कल का होमवर्क दिखाओ!" लेकिन रिंकू ने किया नहीं था, तब मैडम ने उसको सजा दी और डाँटा कि-, "आप आपके अन्दर जो जलन की भावना है, उसको हटाओ और मोहन की तरह होशियार बनो! उसकी लगन पढ़ाई की तरफ कितनी है.. वह आगे जाकर बड़ा आदमी बनेगा और तुमने क्या किया? उसकी कॉपी फाड़ दी।" रिंकू को अपने किए पर शर्मिंदगी महसूस हुई, क्योंकि पूरी कक्षा के सामने उसको डाँट पड़ी। उसने मैडम से कहा-, "मुझे माफ कर दीजिए!"
मैडम ने कहा-, "माफी मोहन से माँगो!" रिंकू ने मोहन से माफी माँगी और कहा-, "मैं भी आपकी तरह लगन के साथ पढ़ाई करना चाहूँगा। आप मुझे अपना दोस्त बनायेंगे?" मोहन ने हाथ मिलाया और कहा-, "हम सभी दोस्त हैं और मिलकर आगे, बढ़ेंगे, पढ़ेंगे और अपने विद्यालय का नाम रोशन करेंगे।" इतना सुनकर मैडम ने ताली बजायी और 'शाबाश' कहा।
मोहन की आगे की पढ़ाई पूरी हुई और पापा का सपना उसने पूरा किया। पापा तो रिटायर हो चुके थे लेकिन इस बैंक में आज मोहन मैनेजर बन कर आया। सभी ने मोहन की तारीफ की और पिताजी का स्वागत किया कि-, "आपने अपने बेटे को बहुत अच्छी शिक्षा दी है।" पिताजी ने मोहन को गले लगा लिया।
संस्कार सन्देश-
हमें अपने बच्चों के अन्दर उत्साह, उमंग और लगन को जगाना है, ताकि बच्चे गलत संगत में न पड़ें और अपने उद्देश्य व लक्ष्य की प्राप्ति करें।
लेखिका-
पुष्पा शर्मा (शि०मि०)
प्रा० वि० राज़ीपुर
ब्लाॅक- अकराबाद,
जिला अलीगढ़ (उ०प्र०)
कहानी वाचक
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपुर
✏️ संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात
Comments
Post a Comment