77/2027, बाल कहानी-27 अप्रैल
बाल कहानी- नासमझी
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एक बार मोहित अपने साथियों विजय और उमेश के साथ एक पहाड़ी पर घूमने गया। वहाँ वे तीनों देर तक पहाड़ी पर घूमते रहे और पेड़-पौधों को देखते रहे। तीनों घूमते हुए आपस में चर्चा कर रहे थे। तभी मोहित बोला-, "यार विजय, उमेश! इस पहाड़ी पर पेड़-पौधों में बहुत से शहद के छत्ते लगे हुए हैं। चलो! मेरे पापा बताते हैं कि यहाँ पर बहुत सी शहद हैं। शहद के छत्ते से मेन भी प्राप्त होता है।"
विजय ने कहा-, बात तो तुम्हारी ठीक है, लेकिन अगर मधुमक्खियों ने हमें काट लिया तो मुश्किल हो जायेगी।"
उमेश बोला-, "हाँ, मोहित! विजय ठीक कहता है। हमने किताबों में पढ़ा है कि ये मक्खियाँ बहुत बुरी काटती हैं और इनके काटने पर दर्द बहुत होता है और शरीर पर सूजन आ जाती है।"
मोहित बोला-, "अरे यार! तुम दोनों भी कहाँ-कहाँ से ज्ञान पढ़कर आते हो! भला किताबी ज्ञान कहीं सच होता है? चलो, अब देर मत करो! शहद ढूँढते हैं।" मोहित का आग्रह देखकर वे दोनों कुछ न कह सके और चारों ओर शहद ढूँढ़ने लगे। तभी एक जगह झाड़ी में उन्हें शहद का बड़ा सा छाता लगा दिखायी दिया। तीनों आपस में बोले-, "देखो..देखो..ये है शहद!"
मोहित बोला-, "तुम दोनों एक ओर हट जाओ! मैं एक डंडा तोड़कर शहद के छत्ते को गिराता हूँ। इसके बाद तुरन्त इन्हीं झाड़ियों के पीछे छिप जायेंगे। बाद में हम तीनों उसे डंडे से खींच लेंगे। जब सभी मक्खियाँ उड़ जायेंगी, तब शहद खायेंगे।"
सभी ने हामी भरी। मोहित ने पास से ही एक डंडा तोड़कर उससे शहद के छत्ते को जोर से हिला दिया। जोर से हिलाने से छत्ता नीचे गिर गया और सभी मधुमक्खियाँ उड़कर चारों ओर फैल गयीं। मोहित और उसके दोस्त झाड़ियों के पीछे दूर जाकर छिप गये।
मधुमक्खियों ने चारों ओर घूमकर भनभनाते हुए क्रोधित होकर देखा, तभी उन्हें अपने-अपने मुँह को ढ़के हुए मोहित और उसके दोस्त दिखाई दिए। तीनों मधुमक्खियों को देखकर वहाँ से तेज भागे। मधुमक्खियों ने उनका पीछा किया और उनमें चिपक गयीं। तीनों दर्द से कराहते हुए चिल्लाये- "आह, मुझे बचाओ!" तभी उधर से एक व्यक्ति मोटरसाइकिल लिए निकला। उसने परिस्थिति को समझते हुए तीनों को तुरन्त आवाज देकर गाड़ी पर बैठाया और वहाँ से चल दिया। उन तीनों के कपड़ों में मक्खियाँ घुस गयी थीं और उन्हें कई जगह काट लिया था। गाड़ी वाले ने उन्हें दूर ले जाकर उतारा और उनसे अपने-अपने कपड़े उतारने को कहा। तीनों ने अपने-अपने कपड़े उतारकर फेंक दिए। उन तीनों के शरीर जगह-जगह पर सूज गये थे। गाड़ी वाले ने तीनों दोस्तों के कपड़ों को फटकारा और अच्छी तरह से देखकर उन्हें पहनाया। फिर उसने उन्हें उनके घर तक पहुँचाया।
घरवालों को जब इन तीनों की इस नासमझी का पता लगा तो उन्होंने उन्हें बहुत ड़ाँटा और काटे हुए स्थान पर शहद लगायी। थोड़ी देर में उन्हें राहत महसूस हुई। उन तीनों ने भविष्य में कभी भी ऐसा कार्य न करने और अकेले पहाड़ों और जंगलों में न जाने की कसम खायी।
संस्कार सन्देश-
हमें कभी भी अज्ञानता वश ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए, जिसकी हमें सही समझ और तरीका मालूम न हो।
लेखक
जुगल किशोर त्रिपाठी
प्रा० वि० बम्हौरी (कम्पोजिट)
मऊरानीपुर (झाँसी).
कहानी वाचक
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपुर
✏️ संकलन
📝 टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात
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