रामनवमी
विधा-छंद मुक्त गीत
जगत के तारण हार राम,
मेरे है और तुम्हारे राम।
1 है विपदाओं का कैसा मरुस्थल,
है किसकी करनी का यह फल,
दशरथ शापित पुत्र वियोग में,
कैकई अंधी राजयोग में,
है सब कुछ पर, कुछ भी नहीं है,
काम है सब निष्काम।
जगत के तारण हारा राम,
मेरे हैं और तुम्हारे राम।
2 त्याग की मूरत लक्ष्मण रामा,
भक्ति समर्पण जय हनुमाना,
वनस्थली से प्रीत लगाना,
जनकसुता हिय सीते रामा,
शबरी के झूठे बेरों को,
खाते हैं भगवान।
जगत के तारण हारा राम,
मेरे हैं और तुम्हारे राम।
3 निश्छल प्रेम भरत सो भाई,
चरण पादुका उर-कंठ लगाई,
हनुमत बूटी धरा उठाई,
लखन संजीवनी दी रघुराई,
हाथ जोड़ उर-कंठ लगाए,
वन के चारों धाम।
जगत के तारण हारा राम,
मेरे हैं और तुम्हारे राम।
4 कैसे गंगा पार हो प्रियवर,
है उलझन में भोले सियवर,
हे! प्रभु मैं, केवट मेरी नैया,
पार कराएगी तुम्हें खिवैया,
तर देना प्रभु भवसागर से,
इतनो सो मेरा काम,
जगत के तारण हारा राम,
मेरे हैं और तुम्हारे राम।
रचयिता
कुसुम शर्मा,
सहायक अध्यापक,
कंपोजिट विद्यालय कन्या जैतपुर,
विकास खण्ड-जैतपुर,
जनपद-आगरा।
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