68/2024, बाल कहानी- 15 अप्रैल


बाल कहानी- मित्रता

एक गांँव में एक व्यापारी रहता था, जिसका नाम गोपाल था। गोपाल बहुत ही लालची था और सबसे ज्यादा पैसे कमाने की लालसा रखता था। उसका मानना था कि केवल पैसे ही सब कुछ है। बिना पैसों के संसार में कोई किसी का नहीं होता। अपनी इस मानसिकता के कारण वह गरीब लोगों से अच्छा व्यवहार भी नहीं करता था। धनी लोगों के आगे-पीछे घूमने में अपना सौभाग्य समझता था।
एक दिन अपने साथी व्यापारियों के साथ गोपाल व्यापार के लिए शहर जा रहा था। रास्ते में गोपाल ने देखा कि उसी के गाँव की गरीब बस्ती में रहने वाले कुछ लड़के नदी में नहा रहे थे। अचानक उन लड़कों ने चिल्लाना शुरू कर दिया। गोपाल ने देखा कि शायद कोई लड़का नदी में डूब रहा है, तभी उसने देखा कि उसके साथी लड़के शोर मचा रहे हैं। गोपाल और उसके साथी व्यापारियों ने यह सब देखकर भी अनदेखा किया और अपने रास्ते चले गये। 
शाम को जब गोपाल वापस घर आया तो उसे पता चला कि उसका खुद का बेटा आज नदी में डूबते-डूबते बचा है। अगर गाँव के वे सभी लड़के उसे न बचाते तो शायद आज वह अपने बेटे को खो चुका होता। उसके बेटे की मित्रता गांँव की गरीब बस्ती में रहने वाले दीनू और गोपी आदि लड़कों के साथ थी। ये सभी बच्चे एक ही विद्यालय में साथ पढ़ते थे और रविवार की छुट्टी के दिन सब नदी में तैरने के लिए जाते थे। चूंँकि गोपाल को गरीबों से नफ़रत थी, इसलिए वह अपने बेटे को उन लड़कों से मिलने और खेलने को मना करता था। विपत्ति के समय सच्चा मित्र ही काम आता है, फिर चाहे वह गरीब हो या अमीर। ये बात आज गोपाल को उसके बेटे और उसके साथियों ने बिना कुछ कहे ही समझा दी थी। 

संस्कार सन्देश-
सच्ची मित्रता अमीरी-गरीबी नहीं देखती। हमें सभी के साथ समान व्यवहार करना चाहिए।

✍️👩‍🏫लेखिका-
शिखा वर्मा (इं०प्र०अ०)
उ० प्रा० वि० स्योढ़ा
बिसवाँ (सीतापुर)
कहानी वाचक-
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपुर 

✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात

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