ज्योत ज्ञान की

जो ज्योत जलाई है मैंने
उसे आगे तुम्हें बढ़ाना होगा
जो अलख जगाई है मैंने
तुम्हें उसको और जगाना होगा
यह ज्योत ज्ञान कि है देखो
इसको तुम ना बुझने देना
यह बात मेरे मान की है
इसको तुम ना झुकने देना
यह धारा अविरल ज्ञान की है
इसको तुम ना रुकने देना

माना मैंने विघ्न बहुत हैं
राह सरल नहीं हमारी
आसानी से मिली सफलता
बोलो कब किसको प्यारी
ज्ञान बाँटने आए हैं हम
ज्ञान से ही होगा उजियारा

सूरज तुम पूरब से आकर
इस समाज का तम हर लेना
ज्ञान देना अपार सभी को
भेद भाव ना होने देना
सूरज जब थक जायेगा
तो भार तुम्हीं पर आएगा

चाँदनी हो तुम पर नहीं चाँद की
तुम शांत हो शीतल हो मन से
सेवा करनी है समाज की
देखो तुमको बड़ी लगन से
अमावस्या जब छा जाएगी
घणी रात्रि जब आएगी

तब दीपक तुमको जलना होगा
शोषित और पीड़ित समाज की
पीड़ा को फिर हरना होगा
माना कि तुम सब बालक हो
किन्तु समाज के तुम ही चालक हो

यह पाठ तुम्हें पढ़ना ही होगा
कितनी भी विपदाएँ आएँ
चाहें कितने घाव लगे हों
आदर्शों पर चलना होगा
छिल जाएँ चाहें पाँव तुम्हारे
कितना भी जाओ धिक्कारे
पर तुम पग से ना पीछे हटना
पीछे ना तुम देख पलटना
इतना सब जब सह जाओगे
तुम जैसे हीरा हो जाओगे

तुम हारोगे ना इस समर में
यह विश्वास अटल है मेरा
तुमसे ही बदलेगा समाज
हम देखेंगे एक नया सवेरा
आशीष सदा है साथ तुम्हारे
तुम यूँ ही तम हारते जाना
अशिक्षित, शोषित वर्ग को
तुमको ही है दिशा दिखाना

जो ज्योत जलाई है मैंने
उसे आगे तुम्हें बढ़ाना होगा
जो अलख जगाई है मैंने
तुम्हें उसको और जगाना होगा

रचयिता
जैतून जिया,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय गाजू,
विकास खण्ड-कछौना,
जनपद-हरदोई।

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