भैय्या विरवा लगाओ हजार

अवधी लोकगीत

भैय्या विरवा लगाओ हजार।
बाबा के विरवा, बहुत पुराने,
आम औ इमली नीम भुलाने।
भैय्या काहे कटायो धरती सिंगार।
  भैय्या विरवा- -
बगिया कटवायो खेत बनायो,
छाँही मिटी सब फल नहिं पायो।
भैय्या चिरई कहाँ करिहैं बसेर।
   भैय्या विरवा- -
बरगद पीपर औ बेरी जलेबी,
महुवा छोंकरु जामुन झरबेरी।
काटि मिटायो सुख केरी बयार।
   भैय्या विरवा- -
तपन मा शीतल छाँही जो होवै,
तौ पसु पक्षी  घर का न रोवै।
तौ बरखा बरसै पूरे जवार।
   भैय्या विरवा- -
आरा चलै जब विरवा कहति है,
काटे पछितैहौ कोऊ न सुनति है।
भैय्या हित है एहिमा हमार।
    भैय्या विरवा- -
एक एक विरवा सब जन लगावौ,
खाली जगह अब हरियाली लावौ।
भैय्या करि लेव आजु विचार।
   भैय्या विरवा- -
पसु पक्षिन के ई विरवा ठिकाना,
संगै पानी का सोता हौवै सुहाना।
चिरइन का पानी रखौ दुवार।
     भैय्या विरवा लगाओ हजार।

"अवध की माटी अवध के गीत"
      संकलन से

रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला, 
जनपद -सीतापुर।

Comments

Total Pageviews