भैया पडबे आ जइयो

जो सिक्छा को है दरवार, भैया पडबे आ जइयो।
इते ज्ञान को है भंडार, भैया पडबे आ जइयो।
जो तुम पड हो लिख हो भैया, राजा बेटा बन हो भैया।
सब जाने तुमे संसार, भैया पडबे आ जइयो।
इते ज्ञान को ज्ञान को है भंडार, भैया पडबे आ जइयो।
सरसुती जू किरपा कर है, तुमको योग्य बे बने है।
तुमरो होवे बड़ो सत्कार, भैया पडबे आ जइयो।
इते ज्ञान को है भंडार, भैया पडबे आ जइयो।
गुरु जू नौनी सिक्छा दै है, अम्बा बाबू खुस हो जै है।
भाग्य तुमाए सोई खुल जै है।
सब तुमैं कर है प्यार, भैया पडबे आ जइयो।
इते ज्ञान को है भंडार, भैया पडबे आ जइयो।

रचयिता
श्रीमती प्रीति श्रीवास्तव,
सहायक अध्यापिका,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय पठाकरका,
विकास खण्ड-बंगरा,
जनपद -झाँसी।
उत्तर प्रदेश।।

Comments

  1. वाह!बहुत सुन्दर,बुन्देलखण्डी
    गीत।प्रेरक। मुझे भी वहाँ की भाषा से परिचित होने का सौभाग्य मिला।
    सतीश चन्द्र"कौशिक"

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  2. सचमुच बहुत सुंदर रचना है थैंक यूmam

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