आदिकवि
राम नाम का अमृत पीकर,
एक डाकू हुआ महान।
महाकाव्य रामायण लिख,
जीता था जिसने जहान।
रत्नाकर डाकू ने एक दिन,
नारद मुनि को पकड़ लिया।
लगे डराने नारद मुनि को,
दुष्टों जैसा व्यवहार किया।
नारद जी बोले रत्नाकर,
तू मत कर ये अनैतिक काम।
वरना भुगतेगा एक दिन,
तू बहुत बुरा अंजाम।
नारद मुनि ने रत्नाकर को,
दिया अनोखा ज्ञान।
तेरे कर्मों के फल को बाँटने,
ना आएँगे अपने काम।
रत्नाकर को प्राप्त हो गया,
एक दिव्य सा ज्ञान।
छोड़ अनैतिक कर्म सारे,
साधू बने महान।
तपस्या में फिर लीन हो गए,
लगे जपने राम का नाम।
दीमकों ने उनके तन पर,
अपना बना लिया था मकान।
इस घटना से रत्नाकर को,
मिला वाल्मीकि का नाम।
डाकू से बन गए महर्षि,
और आदिकवि महान।
राम नाम की पूँजी पाकर,
किया जग का कल्याण।
शीश झुकाकर महागुरु जी,
है शत-शत तुम्हें प्रणाम।
रचनाकार
सपना,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उजीतीपुर,
विकास खण्ड-भाग्यनगर,
जनपद-औरैया।
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