महागौरी तुम्हें नमन

अष्टम दिन महागौरी पधारे,

पापों से मुक्ति मिले हमारे।

बल, बुद्धि, विद्या देती मैया,

दुर्गुण होते फिर  दूर सारे।।


गौर वर्ण की उपमा शंख चक्र कुंद से सुहाए,

समस्त वस्त्र आभूषण श्वेत ही माँ को भाए। 

चतुर्भुजी माता  वृषभ  पर  है विराजी,

शांत मुद्रा महागौरी की जग को लुभाए।।


अभय मुद्रा, त्रिशूल, डमरू, वर मुद्रा शोभित,

शिव को वर रूप में पाने को थी उद्यत।

तप ने माँ का रूप ओजपूर्ण बनाया,

भोलेनाथ ने पत्नी रूप में किया सुशोभित।।


करुणामयी स्नेहमयी माता रहें शांत,

कृपा करो हम पर हम जग से हैं क्लांत।

ध्यान, स्मरण, पूजन रहे कल्याणकारी,

कृपा से अलौकिक सिद्धियाँ  हों प्राप्त।।


पुराण भी करते हैं महिमा का आख्यान,

वृत्तियों को सत की ओर प्रेरित करने का विधान।

सर्वत्र विराजमान है मेरी माँ अंबे,

सदा सुख समृद्धि का दो वरदान।।


रचयिता
नम्रता श्रीवास्तव,
प्रधानाध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय बड़ेह स्योढ़ा,
विकास खण्ड-महुआ,
जनपद-बाँदा।

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