विश्व प्रकृति दिवस
माँ प्रकृति ने हमें अपनी गोद में सँभाला।
और हम नादान प्रकृति के ही मालिक बन बैठे।।
हाय हम क्या कर बैठे?
माँ धरती, जो है धैर्य की प्रतिमा।
और हम नादान चीर कर उसके गर्भ को, सुरंग बना बैठे।।
हाय हम क्या कर बैठे?
माँ प्रकृति ने हमें दिया प्रेम और पोषण।
और हम नादान उसका ही शोषण कर बैठे।।
हाय हम क्या कर बैठे?
माँ प्रकृति से मिली हमें प्राण वायु ऑक्सीजन।
और हम नादान काटकर पेड़ों को, अपना ही दम घोंट बैठे।।
हाय हम क्या कर बैठे?
माँ प्रकृति से मिला हमें पुष्ट बनाने हेतु भोजन।
और हम नादान उसमें केमिकल मिला, ज़हर बना बैठे।।
हाय हम क्या कर बैठे?
माँ प्रकृति से मिले पेड़- पौधों और वन्यजीव।
और हम नादान करके शिकार, उनकी हस्ती मिटा बैठे।।
हाय हम क्या कर बैठे?
माँ प्रकृति से मिली हमें खूबसूरत हरियाली।
और हम नादान दफन कर हरियाली कंक्रीट का जंगल बना बैठे।।
हाय हम क्या कर बैठे?
माँ प्रकृति की गोद उजाड़ दी हमने।
और हम नादान अपनी ग़लती छुपाने को, गमलों में बगिया लगा बैठे।।
हाय हम क्या कर बैठे?
रचयिता
रेनू चौधरी,
एआरपी विज्ञान,
विकास खण्ड-मुरादनगर,
जनपद-गाजियाबाद।
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