कालरूपा कालरात्रि

माँ दुर्गा की सातवीं शक्ति।

कालरात्रि की कर लो भक्ति।।


 जल-भय जंतु-भय शत्रु-भय,

 भगाती मैया हे!  भद्रकाली।

 राक्षस भूत प्रेत पिशाच का,

 नाश करे  चामुंडा काली।।

 पाप  विघ्नों  को  दूर  करें,

 प्राप्त  करें  पावन लोक।

 ध्यान  धरे  जो  हृदय  से,

 विघ्न  मिटे,  हरती हैं शोक।।


 घनघोर अँधेरे  की भाँति,

 रंग  तुम्हारा  माँ काला है।

 बिखरे बाल गले में देखो,

 विद्युत सी चमके माला है।।

 ब्रह्मांड के जैसे गोलाकार,

 नेत्र तुम्हारे अति हैं विशाल।

 तीनों नेत्रों  से  मेरी  मैया,

 किरणों सा चमके है भाल।।


 मुख से निकले तेज ज्वाला,

 गर्दभ चंडी  का  वाहन है।

 दायाँ  हाथ  वर मुद्रा  में,

 वर  देती अति  पावन है।।

 बाएँ हाथ लोहे का काँटा,

 दूजे हस्त  थामे कटार है।

 रूप कालरात्रि बड़ा भयानक,

 शुभ  फल करें  प्रदान है।।


 तू  भैरवी तू  चामुंडा चंडी,

 तू  रौद्ररूपा धुमोरना देवी।

 नाम अनेक  तुम्हारे  मैया,

 तांत्रिक जन काली के सेवी।।

 पूजे जो इक सच्चा साधक,

 समस्त सिद्धियों को पाता।

 शक्ति धन और अति ज्ञान,

 भक्त  तेरा माँ  पा जाता।।


 निष्ठा भाव से हो उपासना,

 यम नियम संयम बनाना है।

 तन मन वचन की सदा ही, 

 पवित्रता भी अपनाना है।।

 हे शुभंकारी! हे कालरात्रि!

 स्मरण मनन करें श्रद्धा से,

 वह शुभ फल को पाता है।

 पूजा की विधि न जानूँ मैं,

 सिर्फ नमन ही मुझको आता है।।


रचयिता

गीता देवी,

सहायक अध्यापक,

प्राथमिक विद्यालय मल्हौसी,

विकास खण्ड- बिधूना, 

जनपद- औरैया।

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