बचपन के खेल
आए याद आज बचपन के खेल,
इक्कड़-दुक्कड़ लगड़ी का मेल।
आओ दोस्त कल्लू बिल्लू पट्टू,
देकर ताव घुमाएँ फिर से लट्टू।।
कंकड़ चुनकर लाओ सखी,
खेलें गुटका उछाल के अभी।
पिड्डू का खेल बहुत निराला,
मारे तक कर गिरा पहाड़ा।।
गाँव की बाला थापे कंडा,
खेले रामू श्यामू गिल्ली डंडा।
तेज हवा में उछली गिल्ली,
बिगड़े गोबर के सब कंडा।।
एक खेल था बहुत ही टेढ़ा,
ग़र देखा पीछे पड़े हथौड़ा।
पड़ी मार तो आए याद माई,
नाम था कोड़ा जमाल खाई।।
कब लगी दौड़ देखो सारी,
टायर घुमाते पहुँचे बखारी।
देर शाम को लौटे घर को,
मैया लेकर बैठी लकड़ी सरारी।।
था मेरा बचपन बड़ा अनोखा,
खाए थे हमने बाटी चोखा।
आज के खेल हमें नहीं भाय,
काश कि बचपन लौट के आए।।
रचयिता
गीता देवी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मल्हौसी,
विकास खण्ड- बिधूना,
जनपद- औरैया।
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