तृतीय माता चंद्रघंटा
माँ चंद्रघंटा का दिवस आया रे।
भक्तों ने शीश झुकाया रे।।
शांतिदायिनी शक्तिस्वरूपा,
मस्तक साजे अर्धचंद्र घंटाकार।
काया चमके स्वर्ण-सी-सुनहरी,
चंद्रघंटा नाम पुकारूँ बारंबार।।
स्वर्ण प्रकाश फैलाया रे...
भक्तों ने शीश .........
करता जो माँ की आराधना,
पापों का उनके करती नाश।
होता भक्त साहसी निर्भीक,
प्रेत बाधा के छूटे हैं पास।।
शरण में माँ के आया रे...
भक्तों ने शीश.........
सिंह सवारी करती माता,
तीन नेत्र मस्तक पर साजे।
अस्त्र-शस्त्र दसों भुजाओं में,
खड्ग बाणादि हस्त विराजे।।
अलौकिक दर्शन करवाया रे,
भक्तों ने शीश.........
लाल सेब अरु लाल पुष्प,
गुड़ चढ़ाकर घंटा भी बजाएँ।
ढोल नगाड़ों से करें वंदना,
गौ माता का दूध चढ़ाएँ।।
भक्तों ने फल पाया रे......
भक्तों ने शीश .........
माँ चंद्रघंटा का दिवस आया रे।
भक्तों ने शीश झुकाया रे।
रचयिता
गीता देवी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मल्हौसी,
विकास खण्ड- बिधूना,
जनपद- औरैया।
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