जीत सत्य की

सच की होती जीत सदा ही,

और झूठ की हार।

कपट, ईर्ष्या और लालच हैं,

विनाश के सच्चे यार।


रावण के अत्याचारों से जब,

जग में मची थी हाहाकार।

छल, कपट से हर के सीता,

खोला बर्बादी का द्वार।

 

अति कर दी जब रावण ने,

कर दी हदें सब पार।

रामचन्द्र तब धरा पे आए,

करने सबका उद्धार।


संग हनुमत के रामचन्द्र जी,

चले समन्दर पार।

वानर सेना ने खूब लगाई,

मिलकर जय जयकार।


शुरू हो गया लंका में फिर,

भीषण महासंग्राम।

लंकापति की लंका में फिर,

मचने लगा कोहराम।


तोड़ दिया अभिमान राम ने,

रावण को धूल चटाई।

चला राम का तीर नाभि पर,

हुआ था रावण धराशाही।


अत्याचारी रावण से तब,

जग ने मुक्ति पाई।

देवों ने की थी वर्षा पुष्प की,

जन-जन ने खुशी मनाई।


करे भलाई जो दूजे की,

उसका सुखी रहे परिवार।

चिन्ता फिकर से दूर रहे वो,

सुने ईश भी उसकी पुकार।


रचनाकार
सपना,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उजीतीपुर,
विकास खण्ड-भाग्यनगर,
जनपद-औरैया।

Comments

Total Pageviews