द्वितीय माता ब्रह्मचारिणी

 माँ दुर्गा का रूप है दूजा,

 ब्रह्मचारी नाम अनूपा।

 अनंत फलों को देने वाली,

 हैं साक्षात सिद्धि स्वरूपा।।


 तप त्याग संयम वैराग्य,

 सदाचार की करतीं वृद्धि।

 नाम जपे जो ब्रह्मचारिणी,

 विजय मिले अरु सर्वत्र रिद्धि।।


 ऋक् यजु साम अथर्वा,

 हैं सारी इनकी संतानें।

 एक हाथ कमंडल थामें,

 दूजे हाथ माला को मानें।।


 शिव की करती थीं वंदना,

 तप किया होकर निराहार।

 तपस्वी सा जीवन है बीता,

 ब्रह्मचारिणी नमन बारंबार।।


 करें जो साधना तुम्हारी,

 हृदय विचलित ना होता।

 सर्वसिद्धि को करता प्राप्त,

 जग में अति प्रतिष्ठा पाता।।


रचयिता

गीता देवी,

सहायक अध्यापक,

प्राथमिक विद्यालय मल्हौसी,

विकास खण्ड- बिधूना, 

जनपद- औरैया।

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