गुरु जी

मझधार पड़ी नैया,

गुरु जी पार लगा जाओ।

सदा राह दिखाई है,

फिर से दिखला जाओ।

मझधार पड़ी नैया,

गुरु जी पार लगा जाओ।


मेरा हाथ पकड़ करके,

हमें लिखना सिखाया।

क ख ग घ पूरा का पूरा,

हमें पढ़ना सिखाया।

नन्हीं कलियों के जैसे,

हमें फिर से खिला जाओ।

मझधार पड़ी नैया,

गुरु जी पार लगा जाओ।


जब करते थे शैतानी,

हमें डाँट लगाते थे।

फिर भी ना माने तो,

हमें छड़ी दिखाते थे।

फिर से आकर गुरु जी,

आँख हमको दिखा जाओ।

मझधार पड़ी नैया,

गुरु जी पार लगा जाओ।


दिल में हमारे क्या है,

तुम सब समझ जाते।

देख आँसू हमारे तुम,

हमें गले से लगाते।

फिर से आकर गुरु जी,

उलझन सुलझा जाओ।

मझधार पड़ी नैया,

गुरु जी पार लगा जाओ।


सदाचार हमें पढ़ाकर

मानवता सिखलाई।

जब मन होता था नीरस,

हमें गीत कहानी सुनाई।

फिर से आकर गुरु जी,

हमको बहला जाओ।

मझधार पड़ी नैया,

गुरु जी पार लगा जाओ।


दुविधा में पड़े हैं हम,

कोई राह नजर ना आए।

जीवन के अंधेरों में,

कौन ज्योति जलाए।

फिर से आकर गुरु जी,

हमें धीर बँधा जाओ।

मझधार पड़ी नैया,

गुरु जी पार लगा जाओ।


रचनाकार
सपना,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उजीतीपुर,
विकास खण्ड-भाग्यनगर,
जनपद-औरैया।

Comments

Total Pageviews