शिक्षक
मंजिल तक पहुँचने की डगर जो दिखाता है।
वो शिक्षक ही तो है जो चलना सिखाता है।
हर राह, हर मोड़, हर राही वही बनाता है।
गुरु ही ब्रह्मा, गुरु ही विष्णु, महेश्वरा कहलाता है।
जन्म से मरण तक जीवन का लक्ष्य बताता है।
वही कर्ण, वही अर्जुन, एकलव्य वही बनाता है।
खुद रहकर धूप में, छाँव सबको दिखाता है।
एक नन्हें से बीज से वृक्ष सजग बनाता है।
तुम वीर बनो, तुम धीर बनो, कलरव करते तुम नीर बनो।
देकर कर्मज्ञान तुमको, एक कर्मवीर वो बनाता है।
अक्षर से शब्दों की ज्वाला, ज्वाला से लावों की धारा।
भूमि पर शिक्षण से रक्षण का कर्तव्य जो निभाता है।
हो द्रोण, चाणक्य या परशुराम तेरे रूप अनेक नीति तमाम।
धरा को हर पल, हर क्षण तू, नित नए वीर दे जाता है।
तभी तो कहते हैं हर युग, जो शीश कटे ओर गुरु मिले।
वो वीर सजग हो जाता है, वो धीर अमर हो जाता है।
रखना अपना आँचल सब पर, ज्ञान का सागर बहता रहे।
इस सागर से हर गागर में, नीर ज्ञान का भरता रहे।
द्वापर युग मे जैसे अर्जुन, गीता का ज्ञान पा जाता है।
वैसे हर युग में एक गुरु, हर अर्जुन का निर्माता है।
रचयिता
शीतल सैनी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय धनोरा,
विकास खण्ड व जनपद-हापुड़।
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