ईद-उल-अजहा

हजरत इब्राहिम की कुर्बानी,

ईद-उल-अजहा याद दिलाए।

पवित्र रमजान के जाने के,

सत्तर दिन बाद यह आए।।


हुक्म मान कर अल्लाह का,

पुत्र का था बलिदान किया।

खुश होकर अल्लाह ताला ने,

उसको जीवनदान दिया।।


पर अनुपम बलिदान का,

बलि का रूप नहीं है इसका।

करो त्याग का तुम उत्थान,

ईद-उल-जुहा है दूसरा नाम।।


मानव सेवा धर्म तुम्हारा,

अल्लाह का संदेश यही था।

मक्का में शैतान को पत्थर,

मारने की है परम्परा।।


आओ खुशी से मिलकर साथ,

मनाएँ बकरीद का त्योहार।

माँगें अमन देश की खातिर,

करें अशान्ति पर प्रहार।।


रचयिता

ज्योति विश्वकर्मा,

सहायक अध्यापिका,

पूर्व माध्यमिक विद्यालय जारी भाग 1,

विकास क्षेत्र-बड़ोखर खुर्द,

जनपद-बाँदा।

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