गुरू पूर्णिमा

जन्म से लेकर मृत्यु तक,

       जीवन का मार्ग प्रशस्त करें,    

      अक्षर ज्ञान से "ज्ञानवान" बनने का पथ,

       आदर्श गुरु दिखलाते हैं|

 अपने अनुभवों की गठरी से,

    जीवन का हर पाठ सिखाएँ वे,

  मन, हृदय, शरीर का सामंजस्य,

       करना हमको सिखलाते हैं|

अपने शिक्षण से प्रेरित कर,

         आदर्शों के प्रति मूरत हैं,

सर्वस्व समर्पित शिक्षा को,

        सर्वोच्च स्थान ही पाते हैं|

असंभव को संभव करने की, 

      प्रतिभा तुझमें है शिष्य मेरे,

ऐसे प्रेरक वचनों से सदैव, 

    आत्म बल से परिपूर्ण कर जाते हैं|

ब्रह्मा तुम हो, विष्णु तुम हो, 

      तुम ही तो रूप महेश्वर भी,

सकल सृष्टि में सिर्फ "गुरु" ही,

           परम ब्रह्म कहलाते हैं|

सीढ़ी जब चढ़ें सफलता की,

      उसके आधार पर गुरु चरण,

अपने शिष्यों के तमस को हर,

         ज्ञान प्रकाश में ले जाते हैं|

शिष्य की शोभा गुरु से है,

      उनके ऋण से उऋणता आसान नहीं,

एकलव्य सा हो जब परम शिष्य, 

        वो गुरु "अमर" हो जाते हैं|


रचयिता

भारती खत्री,

सहायक अध्यापक,

उच्च प्राथमिक विद्यालय फतेहपुर मकरंदपुर,

विकास खण्ड-सिकंदराबाद,

जनपद-बुलंदशहर।



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