गुरु पुर्णिमा
माता-पिता ने जन्म दिया है,
और गुरु ने ज्ञान दिया।
गुरु ही तो है जीवन में जिसने,
सबको मान सम्मान दिया।
गुरु है वह ज्ञान पुँज जो,
शिष्य को राह दिखाता है।
भले बुरे का भेद समझा कर,
जीवन को सफल बनाता है।
प्रथम गुरु है माँ जीवन की,
दुनिया जो दिखलाती है।
द्वितीय गुरु पिता हैं जो,
हाथ पकड़ कर राह सुझाते हैं।
स्थान तीसरा है गुरु का,
जो निर्धारित लक्ष्य बताते हैं।
अज्ञानता का तिमिर हर के,
ज्ञान दीप जलाते हैं।
गुरु कुम्हार शिष्य कुंभ है,
कहावत है सौ आने सच्ची।
गुरु के चरणों में समर्पित,
शिष्यों की सारी उपलब्धि।
पाठशाला से ही आरंभ,
जीवन में गुरु का समागम।
गुरु वचनों को गाँठ बाँधकर,
चलते जाते जीवन पथ पर।
गुरु वह है जो अंतर्मन छू ले,
साथ लाए खुशियों की भरमार।
शिष्यों के चेहरे खिल जाएँ,
गुरु जीवन हो जाए साकार।
गुरु तो है अनमोल जगत में,
गुरु का कोई पर्याय नहीं।
लक्ष्य की राहें सरल बना दे,
सही मायने में गुरु वही।
रचयिता
बबली सेंजवाल,
प्रधानाध्यापिका,
राजकीय प्राथमिक विद्यालय गैरसैंण,
विकास खण्ड-गैरसैंण
जनपद-चमोली,
उत्तराखण्ड।
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