अरुणिमा
अम्बर सारा नाप लिया,
एक पैर से तुमने।
नामुमकिन को मुमकिन,
कर दिया तुमने।
लाचारियाँ ना रोक सकीं,
अरुणिमा तेरी राह।
सहे थे दर्द लाखों पर,
ना निकली मुँह से आह।
दुष्टों ने तुझे फेंक दिया,
चलती ट्रेन से।
उस दिन से ना सोई तू,
कभी भी चैन से।
गँवा के पैर अपना एक,
तू फौलाद हो गई।
कुछ करने की चाह में,
तू तैयार हो गई।
करूँगीफतह एवरेस्ट,
जब सबको बताया।
सबने मिलकर तेरा,
फिर मजाक बनाया।
हार ना मानी कभी,
तूने अरुणिमा।
जग में जगमगाई तू,
बनके अरुणिमा।
तपा अपने तन को,
फौलाद बनाया।
समझा के अपने मन को,
दृढ़ था बनाया।
कस ली कमर अपनी,
तूने शान से।
कर दिया एक वादा,
इस जहान से।
आऊँगी जीत कर के,
ये जंग मेरे यारों।
जाए तो जान जाए,
कोई गम ना मेरे यारों।
हवाएँ थीं बर्फीली बहुत,
दुर्गम थे रास्ते।
कदम हटाया पीछे ना,
अपनी जिद के वास्ते।
तेरी जिद के आगे,
टिक सका ना एवरेस्ट।
स्वागत में फिर तेरे,
सिर झुकाया एवरेस्ट।
एक पैर से करके फतह,
जग तूने दिखाया।
जिद बड़ी है अपनी,
ये सबको है बताया।
फहरा दिया तिरंगा,
एवरेस्ट पे तूने।
रच दिया इतिहास नया,
जिद पे अपनी तूने।
दिव्यांग भी रच सकते,
इतिहास नया जग में।
आएँ हजारों मुश्किल,
चाहें अपने मग में।
गाथा लिखूँ क्या तेरी,
कम शब्द पड़ गए।
लेखनी मेरी है सूखी,
हम निःशब्द हो गए।
नमन तुझे अरुणिमा,
तेरी जिद को है नमन।
तेरे जनम दिवस पर,
हैं श्रद्धा सुमन अर्पण।
रचनाकार
सपना,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उजीतीपुर,
विकास खण्ड-भाग्यनगर,
जनपद-औरैया।
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