गुरु
माँ तुम मेरी प्रथम गुरु,
तुम बिन जीवन नाहि।
यह जग सारी सम्पदा,
तुमसे बढ़कर नाहि।।
पहला कोरा खिलाया तूने,
पहला पग भी चलाया तूने।
जब-जब दुख दिया जग ने माँ,
आँचल में छुपाया तूने।।
पिता हैं मेरे द्वितीय गुरु,
मुझको चलना सिखाया।
जब-जब चलकर मैं गिरी,
अपना हाथ बढ़ाया।।
आधी रोटी खाय के,
मुझको शिक्षा दिलाई।
सदाचार की बातें ही,
मुझको सदा बताई।।
शिक्षक मेरा तृतीय गुरु,
उस बिना ज्ञान कहाँ।
गुरु के ज्ञान का आदि ना अन्त,
जहाँ भी देखो वहाँ।।
भले बुरे का ज्ञान दिया,
मुझे इस योग्य बनाया।
अपने ज्ञान के तेज से,
सब अन्धकार मिटाया।।
सभी बड़े मेरे गुरु,
सब हैं देव समान।
ज्ञान का दाता बना दिया,
मैं थी एक नादान।।
स्वार्थ के इस जगत में,
मेरा अपना ना कोय।
गुरु तुम्हारा ज्ञान ही,
पार लगाएगा मोय।।
रचयिता
हेमलता गुप्ता,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मुकंदपुर,
विकास खण्ड-लोधा,
जनपद-अलीगढ़।
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