उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद

धनपतराय नाम है, लोकप्रिय विचारक।

हिंदी उर्दू कहानीकार और समाज सुधारक।


धन्य किया लमही ग्राम, तिथि 31 जुलाई।

पिता अजायब राय, आनंदी देवी थीं माई।


संघर्षमय जीवन रहा, धीरज ना छोड़ा कभी।

गबन, गोदान लिखे, कर्मभूमि, रंगभूमि।


पूस की रात कफन भी, दो बैलों की कथा भी।

बूढ़ी काकी कहानियाँ, 300 से अधिक थीं।


महाजनी सभ्यता थी, उनका अंतिम निबंध।

साहित्य सृजन में लगे, मंगलसूत्र रहा अपूर्ण।


नाम से एक युग बना, प्रेमचंद युग नाम।

पराधीनता छुआछूत, जाति भेद का चित्रण।


आदर्श यथार्थवाद था, साहित्य की विशेषता।

सामाजिक कृषक जीवन, नहीं भोग विलासिता।


देशभक्ति जाग गई, छोड़ी सरकारी नौकरी।

लिखा पत्रिका में फिर, रास न आई प्रेम नगरी।


प्रगतिशील लेखक थे, ग्रामीण चित्रण में कुशल।

हिंदी साहित्य गगन में, यथार्थ लेख में कुशल।


कोटि-कोटि नमन मेरा, माटी के तुम लाल।

8 अक्टूबर 1936 गमन, इंसान रहे कमाल।


रचयिता
नम्रता श्रीवास्तव,
प्रधानाध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय बड़ेह स्योढ़ा,
विकास खण्ड-महुआ,
जनपद-बाँदा।

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