मुंशी प्रेमचन्द
सन् अट्ठारह सौ बयासी में,
जन्मे थे ये प्रतिभावान।
पिता अजायब माँ आनंदी,
धनपत राय बचपन का नाम।।
कालजयी रचनाएंँ लिखकर,
प्रेमचन्द अमरत्व को पाये।
नवाब राय था उपनाम,
हिन्दी उर्दू को गले लगाए।।
"सोजे वतन" से मुंशी जी,
देश प्रेम की अलख जगाये।
नवाब राय की छुपी पहचान,
प्रेमचन्द नाम अपनाये।।
"गोदान" में होरी धनिया,
गौ का दान न कर पाए।
ग्राम्य जीवन का मार्मिक चित्रण,
प्रेमचन्द्र जी दर्शाए।।
बंसीधर "नमक का दरोगा",
कालाबाजारी को रोके।
धर्म की जीत हुई धन पर,
अपोलोदीन हाथ जोड़े।।
बेमेल विवाह का शिकार,
हुई बिचारी "निर्मला"।
मध्यमवर्गीय परिवार की,
दिखलाई थी यथार्थता।।
बुधिया मरते मर गई देखो,
हुआ न उसको "कफ़न" नसीब।
मृत्यु भोज में तृप्ति देखें,
रिवाज है ये कैसा अजीब।।
"पूस की रात" में जब हल्कू,
बिन कम्बल सो ना पाए।
जली फसल मुन्नी कोसे,
हल्कू मन में मुस्काए।।
मुंशी जी मुस्कान में भी,
दर्द का चित्रण यूँ कर गए।
रखकर निर्धनता को केंद्र में,
सामन्तवाद पर व्यंग कस गए।।
खाला परेशान होकर,
अलगू को थी पंच बदाय।
न्याय किया अलगू ने जब,
जुम्मन हैरान हो जाए।।
बारी आई जुम्मन की,
अलगू की साँसें अटकी।
न्याय तख्त में जुम्मन समझे,
पंच में परमेश्वर वास करें।।
है प्रार्थना ईश्वर से यह,
लेखनी समाज के हित उठाऊँ।
मानव मूल्यों को उकेरकर,
प्रेमचंद मैं भी हो जाऊंँ।।
रचयिता
ज्योति विश्वकर्मा,
सहायक अध्यापिका,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय जारी भाग 1,
विकास क्षेत्र-बड़ोखर खुर्द,
जनपद-बाँदा।
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