गुरु
सत्य की राह पे हमको चलाएँ,
ज्ञान का दीपक पथ पे जलाएँ।
कौन है वो...?
गुरु हैं, गुरु हैं, मेरे गुरु हैं।।
आँखों से मुझको सृष्टि दिखाकर,
ज्ञान की बारिश नित्य कराए।
प्यासे मन की प्यास बुझाकर,
अंधियारे में जोत जगाए।
कौन है वो...?
गुरु हैं, गुरु हैं, मेरे गुरु हैं।।
वाणी से ज्ञान की गंगा बहाकर,
माटी को छूकर स्वर्ण बनाए।
मुझ मूर्ख को ज्ञान कराकर,
कुटिया पे आकर शान बढ़ाए।
कौन है वो..
गुरु हैं, गुरु हैं, मेरे गुरु हैं।।
द्रोण के जैसे दीक्षा कराकर,
कलाहीन को निपुण बनाए।
शिष्टाचार के मंत्र सिखा कर,
सदाचार का पाठ पढ़ाए।
कौन है वो..?
गुरु हैं, गुरु हैं, मेरे गुरु हैं।।
रचयिता
रविंद्र कुमार "रवि" सिरोही,
एआरपी,
विकास खण्ड-बड़ौत,
जनपद-बागपत।
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