विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस

मत तोड़ो पौधों को, छिन जाएगी ममता,

हरियाली को मत हरो, नष्ट होगी मानवता।

फलने-फूलने दो प्रकृति को, जुल्म मत करो,

इनमें भी जीवन है, समझो ये नैतिकता।।


बहती हुई कल- कल निनाद करती नदियाँ,

फल फूलों से लदी हुई देखो यह बगिया।

ये खूबसूरत नजारे जीने का संबल दें,

कूड़ादान बनाकर न छीनों ये खुशियाँ।।


अल्हड़, अलमस्त विचरतीं हैं ये नदियाँ,

लताकुंज में नाचे मोर बोले कोयलिया।

खेत खलिहानों की अनुपम रही शोभा,

अब नहीं बसंत बहार ना कोई खुशियाँ।।


पहाड़ झरने सब स्वच्छंद चाहें जीना,

पर मानव ने इनका सुख चैन छीना।

चल रहा है कष्ट का सिलसिला अनवरत,

रंग हुए बदरंग, न चीरो इनका सीना।।


रक्षा करें पर्यावरण की, पाएँ जीवन दान,

प्रकृति द्वारा हमें दिया गया वरदान।

आओ सब मिल पर्यावरण बचाएँ,

वृक्ष लगाकर करो उसका सम्मान।।


पर्यावरण में निहित हम सबकी जान,

इसका सब जन मिल रखो ध्यान।

मत काटो पेड़ों को उनको भी दुखता है,

हरियाली होगी चारों ओर, देश होगा महान।।


रचयिता

नम्रता श्रीवास्तव,
प्रधानाध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय बड़ेह स्योढ़ा,
विकास खण्ड-महुआ,
जनपद-बाँदा।

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