ई- पाठशाला
बुझते हुए चरागों की अब शाम ढल रही है,
कोरोना का कहर है पर अशिक्षा जल रही है।
जिन्हें ये भी न हो मालूम, क्या ख्वाब देखना,
सूनी उन आँखों में उम्मीद पल रही है।।
अभी तक थे रोशन, चरागों से ये स्कूल,
स्कूलों को उन चरागों की अब कमी खल रही है।
हाथों को बाँध रखा है, महामारी ने इस तरह,
उठते हुए, चलते हुए हिम्मत सँभल रही है।।
रोकेगा कौन हमको जब हमने है ठाना,
देखो यहाँ 'जमीन पर' ई- पाठशाला चल रही है ।
बुझते हुए चरागों की अब शाम ढल रही है,
कोरोना का कहर है अशिक्षा जल रही है ।।
रचयिता
उषा देवी,
प्रभारी प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय तलकापुर,
विकास खण्ड- हथगाम,
जनपद - फतेहपुर।
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