काश! मैं मछली होती
काश मैं मछली होती,
डुबुक-डुबुक करती रहती,
उछल-कूद खूब मचाती,
इधर तैरती - उधर तैरती,
पानी में लहराती रहती
काश मैं मछली होती।
काश मैं मछली होती ,
डुबुक-डुबुक कर गाना गाती,
मीठे-मीठे गीत गुनगुनाती,
झूम-झूम कर सबको सुनाती।
काश मैं मछली होती,
डुबुक-डुबुक कर मस्ती करती,
नदिया से सागर में जाती,
सागर से नदिया में आती,
दिन भर मस्ती करती रहती,
रात में फिर सो जाती,
काश मैं मछली होती,
डुबुक-डुबुक करती रहती।
रचयिता
चंचला पाण्डेय,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मसीरपुर,
विकास खण्ड-बिलरियागंज,
जनपद-आज़मगढ़।
डुबुक-डुबुक करती रहती,
उछल-कूद खूब मचाती,
इधर तैरती - उधर तैरती,
पानी में लहराती रहती
काश मैं मछली होती।
काश मैं मछली होती ,
डुबुक-डुबुक कर गाना गाती,
मीठे-मीठे गीत गुनगुनाती,
झूम-झूम कर सबको सुनाती।
काश मैं मछली होती,
डुबुक-डुबुक कर मस्ती करती,
नदिया से सागर में जाती,
सागर से नदिया में आती,
दिन भर मस्ती करती रहती,
रात में फिर सो जाती,
काश मैं मछली होती,
डुबुक-डुबुक करती रहती।
रचयिता
चंचला पाण्डेय,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मसीरपुर,
विकास खण्ड-बिलरियागंज,
जनपद-आज़मगढ़।
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