बसंत

सर्दियों की लम्बी ख़ामोशी के बाद..
आसमाँ बादलों से हो गया है साफ़..
झीमि-झीमि शीतल सुगन्धित पवन बहने लगी है..
भवरों के गुंजन संग कोयल छेड़े लगी है तान..
देखो मनभावन सुहावन बसन्त आया रे।

महुवाँ कुचियाँए लगे बौरों से लद गए हैं आम...
पीले-पीले सरसों से सुंदर लगने लगा है जहान..
हरे-भरे पेड़-पौधे चारों ओर हरियाली..
प्रकृति का कण-कण आह्लादित होने लगा है..
देखो मनभावन सुहावन बसन्त आया रे....

फूलों पर रंग बिरंगी तितिलियाँ मंडराने लगी हैं..
उपवन में भीनी-भीनी ख़ुशबू महकने लगी है...
हरी-भरी घासों के आकर्षण से प्रफुल्लित होने लगा है मन..
वृक्षों में नई-नई कोपलों के नयनाभिराम दृश्य से...       
आत्मा आनंदविभोर् होने लगी है...
देखो मनभावन सुहावन बसन्त आया रे...

सूरज बर्फ की चादर समेट ले गया है....
सुकुमारियाँ राधे कृष्ण गीत गाने लगी हैं...
तैयारी होली, बैसाखी की होने लगी है...
प्रकृति अपूर्व सौंदर्य से नहाने लगी है...
देखो मनभावन सुहावान ऋतुराज बसंत आया रे....

रचयिता
रवीन्द्र नाथ यादव,
सहायक अध्यापक,  
प्राथमिक विद्यालय कोडार उर्फ़ बघोर नवीन,
विकास क्षेत्र-गोला,
जनपद-गोरखपुर।

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