सुखद नववर्ष हो
सुखद नववर्ष हो, हम चाहते हैं,
सतत् उत्कर्ष हो, हम चाहते हैं।
दीनता, भुखमरी, मँहगाई हर ओर है
भूखी अन्तड़ियाँ, काफी मुँहजोर हैं।
ध्वंस ही ध्वंस, बिखरा चहुँओर है।
हर तरफ आतंक, अभ्रदता का शोर है,
सृजन का विमर्श हो हम चाहते हैं।
सुखद नववर्ष हो, हम चाहते हैं,
सतत् उत्कर्ष हो, हम चाहते हैं।
शिक्षा के पावनतम, शिखर बनें हम,
शांति-सौम्यनस्य के निर्झर, बनें हम।
प्रेम-सद्भाव के सागर, बनें हम,
फलित आदर्श हों, हम चाहतें हैं।
सुखद नववर्ष हो, हम चाहते हैं,
सतत् उत्कर्ष हो, हम चाहते हैं।
सुखद नववर्ष हो, हम चाहते हैं।
रचयिता
सतत् उत्कर्ष हो, हम चाहते हैं।
दीनता, भुखमरी, मँहगाई हर ओर है
भूखी अन्तड़ियाँ, काफी मुँहजोर हैं।
ध्वंस ही ध्वंस, बिखरा चहुँओर है।
हर तरफ आतंक, अभ्रदता का शोर है,
सृजन का विमर्श हो हम चाहते हैं।
सुखद नववर्ष हो, हम चाहते हैं,
सतत् उत्कर्ष हो, हम चाहते हैं।
शिक्षा के पावनतम, शिखर बनें हम,
शांति-सौम्यनस्य के निर्झर, बनें हम।
प्रेम-सद्भाव के सागर, बनें हम,
फलित आदर्श हों, हम चाहतें हैं।
सुखद नववर्ष हो, हम चाहते हैं,
सतत् उत्कर्ष हो, हम चाहते हैं।
सुखद नववर्ष हो, हम चाहते हैं।
रचयिता
डॉ0 प्रवीणा दीक्षित,
हिन्दी शिक्षिका,
के.जी.बी.वी. नगर क्षेत्र,
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