वह एक : प्रकाशपुंज

नाम भी अनेक;
काम भी अनेक,

इस अविरल, अविराम पथिक की
राह भी अनेक।

स्वयं को जलाकर दूसरों को रोशन वो करे,
अपने सुख-चैन को त्यागकर अन्य को पुष्पित वो करे।

स्वयं के विभिन्न रंगों से; दूसरों में रंग बिखराता वो,
प्रतिक्षण-प्रतिपल नित नए आयाम जगाता वो।

अपने जीवन के स्वर्णिम सपनों से,
बच्चों को नए नए सपने दिखाता वो।

पथप्रदर्शक, मार्गदर्शक, अडिग और धैर्यवान,
सहनशीलता के चर्मोत्कर्ष पर वह विराजमान।

हताश होकर भी आशा की किरण लिये,
नन्हें-मुन्हों के जीवन के बने दिये।

एक "शिक्षक" ही है; वह एक "शिक्षक" ही है,
बिना शिक्षक के हम हैं ऐसे; बिना सुंगध सुमन हैं जैसे।
         
रचयिता
दीक्षा गुप्ता,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय-रैपुरा,
विकास क्षेत्र-मानिकपुर,
जनपद-चित्रकूट।

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