कार्बन

टेढ़े-मेढ़े रास्तों पर
सोंधी मिट्टी, नदी
तालाब, कुओं पर
खेत-खलिहान में
लहलहाते पेड़
उसके पत्ते
करते है बातें
आपस में
आते हैं काम
हम मानव के,
निर्लिप्त हैं
मनुष्य दोहन में
सुख भौतिक भोग में
नहीं परवाह प्रकृति की
न ही उसे भविष्य की
एकत्र कर रहा कार्बन
छा रहा धुंध कार्बन का
हम ही फैला रहे
कार्बन धरा पर
फैक्ट्री, कारखानों
भौतिकता में लिप्त
हरी-भरी धरा को
काला करने में तुले
नहीं बचेगी ऑक्सीजन
कार्बन ही कार्बन
का भविष्य और
बचेगी ये धरा
मोल में मिलेंगी
ऑक्सीजन, फिर
सब रह जायेगा
धरा पे धरा का धरा!!

रचयिता
आकिब जावेद,
सहायक अध्यापक,
अंग्रेजी माध्यम प्राइमरी स्कूल उमरेहण्डा,
विकास खण्ड-बिसंडा,
जिला-बाँदा,
उत्तर प्रदेश।

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